वास्तव में अगर ऐसे लोगों में कुछ सोचने व चिंतन करानेkई काबिलियत होती तो ऐसे बकबास ,अर्थ हीन , मूर्खतापूर्ण लेख नहीं लिखे जाते । सम्पादक भी न जाने कैसे कैसे बकवास लेख छापते रहते हैं।
साहित्य का ऐसे ही लोगों न कूड़ा किया हुआ है।
साहित्य के नाम पर जाने क्या क्या लिखा जा रहा है रचनाकार चट्पटे, बिक्री योग्य, बाज़ारवाद के प्रभाव में कुछ भी लिख रहे हैं बिना यह देखे कि उसका समाज साहित्य कला , कविता पर क्या प्रभाव होगा। मूलतः कवि गण-विश्व सत्य, दिन मान बन चुके तथ्यों ( मील के पत्थर) को ध्यान में रखेबिना अपना भोगा हुआ लिखने में लगे हैं जो पूर्ण व सर्वकालिक सत्य नहीं होता। अतः साहित्य , पुरा संस्कृति व नवीनता के समन्वित भावों के प्राकट्य हेतु मैंने इस क्षेत्र में कदम रखा। कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित......
साहित्य का ऐसे ही लोगों न कूड़ा किया हुआ है।
2 टिप्पणियां:
आपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
बहुत खूब और सठिक लिखा है आपने! बिल्कुल सही फ़रमाया कि आजकल लोगों को अपने काम से ज़्यादा दूसरों के काम में दखल देना, निंदा करना, गाली देना इन सब बातों में बहुत ज़्यादा दिलचस्पी लेते हैं और संपादक का तो बात ही मत कहिये बस उनको तो चटपटा और मसालेदार ख़बर मिलने से मतलब है इसलिए अच्छा हो या बुरा छपवाते रहते हैं!
thanx 4 kaments
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