saahityshyamसाहित्य श्याम

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शुक्रवार, 15 मई 2009

गीत का स्वर--

मेरे गीतों में आकर के तुम क्या बसे,गीत का स्वर मधुर- माधुरी होगया ,
अक्षर अक्षर सरस आम्र मन्ज़रि हुआ , शब्द मधु की भरी गागरी होगया॥
tum jo ख्यालों में आकर समाने लगे, गीत मेरे कमल दल से खिलने लगे।
मन के भावों में तुमने जो नर्तन किया,गीत ब्रज की भगति-बावरी होगया॥


प्रेम की भक्ति सरिता में होके मगन मेरे मन की गली तुम समाने लगे।
पन्ना पन्ना सजा प्रेम रसधार में , गीत पावन हो मीरा का पद होगया॥



भाव चितवन के मन की पहेली बने,गीत कविरा का निर्गुण सबद होगया।
तुमने छंदों में सजके सराहा इन्हें , मधुपुरी की चतुर नागरी होगया॥

तुम जो हँस-हँस के मुझको बुलाते रहे,दूर से छलना बन के लुभातीं रहीं।
गीत इठलाके तुम को बुलाने लगे ,मन लजीली कुसुम वल्लरी होगया॥


मस्त में तो यूँही गीत गाता रहा, तुम सजाते रहे, मुस्कुराते रहे।
भाव भंवरा बने गुनगुनाने लगे,गीत का स्वर नवल पांखुरी होगया॥

तुमने कलियों से जो लीं चुरा शोखियाँ,बन के गज़रा कली खिलखिलातीं रहीं।
पुष्प चुनकर जो आँचल में भरने चलीं, गीत पल्लव सुमन आंजुरी होगया॥

तेरे स्वर की मधुर-माधुरी मिल गयी,गीत राधा की प्रिय बांसुरी होगया।
भक्ति के भाव तुमने जो अर्चन किया,गीत कान्हा की प्रिय सांवरी होगया ॥



2 टिप्‍पणियां:

gyaneshwaari singh ने कहा…

namste
kya baat hai
mind blowing
pada to acha laga but gungunake bhaut aha laga
acha likhte hai aap

डा श्याम गुप्त ने कहा…

dhanyvaad, sakhi! keep it up.