किस दिल पे कविता-कामिनी का राज नहीं है ।
है बात और काव्य जो दिलसाज़ नहीँ है।
किस कवि को अपनी कविता पे नाज़ नहीं है,
है बात और पुरकश आगाज़ नहीं है।
जो वक्त की आवाज़ उठाते हैं जोर से ,
मत जानिए वो वक्त से नाराज़ नहीं है।
चुप चाप चलाते हैं जो शमशीरे -कलम को,
मत समझिये वो वक्त की आवाज़ नहीं है।
लायें जो कौडी दूर की ,कोई समझ न पाय,
वो कल थे उनका नाम भी तो आज नहीं है।
खवरों की तरह हांकते है लंतरानियां ,
वे हैं विदूषक ,कोई काव्य साज़ नहीं है।
कहते है हम को दिखा करके पूछ के लिखो,
सचमुच क्या तबियत आपकी नासाज़ नहीं है।
कवि बादशाह है सदा अपने कलाम का ,
है बात और उसके सर पे ताज नहीं है ।
सुनकर ग़ज़ल न आपने की वाह वाह श्याम ,
ये शायराना आपका अंदाज़ नहीं है॥
साहित्य के नाम पर जाने क्या क्या लिखा जा रहा है रचनाकार चट्पटे, बिक्री योग्य, बाज़ारवाद के प्रभाव में कुछ भी लिख रहे हैं बिना यह देखे कि उसका समाज साहित्य कला , कविता पर क्या प्रभाव होगा। मूलतः कवि गण-विश्व सत्य, दिन मान बन चुके तथ्यों ( मील के पत्थर) को ध्यान में रखेबिना अपना भोगा हुआ लिखने में लगे हैं जो पूर्ण व सर्वकालिक सत्य नहीं होता। अतः साहित्य , पुरा संस्कृति व नवीनता के समन्वित भावों के प्राकट्य हेतु मैंने इस क्षेत्र में कदम रखा। कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित......
2 टिप्पणियां:
बहुत खूब! आपकी कविता तो काबिले तारीफ है!
ye shaayraanaa andaaz hee hai aapka.
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