१.
कालिंदी का तीर औ ' वंशी -धुन की टेर,
गोप-गोपिका मंडली , नगर लगाती फेर ।
नगर लगाती फेर ,सभी को यह समझाती ,
ग्राम,नगर की सभी गन्दगी जल में जाती ।
विष सम काला दूषित जल है यहाँ नदी का ,
बना सहस-फन नाग ,कालिया कालिंदी का।।
२.
यमुना तट पर श्याम ने वंशी दई बजाय,
चहुँ -दिशि,मोहिनि फेरकर,सबको लिया बुलाय।
सब को लिया बुलाय , प्रदूषित यमुना भारी ,
करें सभी श्रम दान , स्वच्छ हो नदिया सारी ।
तोड़ किया विष हीन , प्रदूषण नाग का नथुना ,
फन-फन नाचे श्याम,झरर-झर झूमी यमुना ॥
साहित्य के नाम पर जाने क्या क्या लिखा जा रहा है रचनाकार चट्पटे, बिक्री योग्य, बाज़ारवाद के प्रभाव में कुछ भी लिख रहे हैं बिना यह देखे कि उसका समाज साहित्य कला , कविता पर क्या प्रभाव होगा। मूलतः कवि गण-विश्व सत्य, दिन मान बन चुके तथ्यों ( मील के पत्थर) को ध्यान में रखेबिना अपना भोगा हुआ लिखने में लगे हैं जो पूर्ण व सर्वकालिक सत्य नहीं होता। अतः साहित्य , पुरा संस्कृति व नवीनता के समन्वित भावों के प्राकट्य हेतु मैंने इस क्षेत्र में कदम रखा। कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित......
शनिवार, 6 जून 2009
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1 टिप्पणी:
बहुत ही शानदार लिखा है आपने कि कहने के लिए अल्फाज़ नहीं है!
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