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सोमवार, 15 जून 2009

श्याम लीला--४,गोवर्धन धारण--कुंडली- छन्द

१.

जल अति भारी बरसता,व्रन्दावन के धाम,
हर वर्षा रितु डूबते , ब्रन्दावन के ग्राम ।
व्रन्दावन के ग्राम सभी सहते दुख भारी,
श्याम कहा समझाय,सुनें सब ही नर-नारी।
ऊंचे गिरि तल बसें,छोड नीचा धरती तल,
फ़िर न भरेगा ग्राम,ग्रहों में बर्षा का जल ॥

२.
पूजा नित-प्रति इन्द्र की,क्यों करते सब लोग,
गोवर्धन पूजें नहीं, जो पूजा के योग ।
जो पूजा के योग , सोचते क्यों नहीं सभी ,
देता पशु,धनधान्य,फ़ूल-फ़ल,सुखद वास भी।
हितकारी है ’ श्याम, न गोवर्धन सा दूजा,
करें नित्य ब्रज-ब्रन्द, सभी गोवर्धन पूजा ॥

३.

सुरपति जब करने लगा, महाव्रष्टि व्रज धाम,
गोवर्धन गिरि बसाये,व्रज बासी घन श्याम।
व्रज बासी घन श्याम ,गोप,गोपी,सखि, राधा,
रखते सबका ध्यान, न आती कुछ भी बाधा ।
उठा लिया गिरि कान्ह,कहें ब्रज बाल-ब्रन्द सब,
चली न कोई चाल, श्याम यूं हारा सुरपति॥

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