सुबह सवेरे मुरली बाजे , गूंजे आठों याम।
स्वर रस टपके सब जग भीजे, उपजे भाव ललाम।
रस टपके उर गोप-गोपिका, बाढे प्रीति अनाम ।
रस भीजे मेरी सूखी लकडियां, सास करे बदनाम ।
श्याम की वन्शी बजे जलाये,पिय मन सुबहो शाम।
पोर-पोर कान्हा को बसाये, नस-नस राधे-श्याम॥
काहे मुरली श्याम बजाये ।
सांझ सवेर बजे मुरलिया, अति ही रस बरसाये ।
रस बरसे मेरो तन-मन भीगे,अन्तर घट सरसाये ।
रस भीगे चूल्हे की लकडी, आग पकड नहिं पाये ।
फ़ूंक-फ़ूंक मोरा जियरा धडके चूल्हा बुझ बुझ जाये।
सास ननद सब ताना मारें, देवर हंसी उडाये ।
सज़न प्रतीक्षा करे खेत पर, भूखा पेट सताये ।
श्याम’बने कैसे मोरी रसोई, श्याम उपाय बताये ।
वैरिन मुरली श्याम अधर चढि, तीनों लोक नचाये ॥
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