ख्याल बनकर तुम मन में समाने लगे।
तुम लिखो गीत जीवन के सन्सार के ,
गीत मेरे लिखो यूं बताने लगे ।
जब उठाकर कलम गीत लिखने चला,
कल्पना बन के तुम मुस्कुराते रहे ।
लेखनी यूंही कागज़ पे चलती रही ,
यूं ही लिखता रहा तुम लिखाते रहे ।
छंद रस रागिनी स्वर पढे ही नहीं ,
कैसे गीतों को सुर ताल ओ लय मिले।
में चलाता रहा बस यूं ही लेखनी ,
ताल लय उनमें तुम ही सज़ाते रहे ।
गीत मैंने भला कोई गाया ही कब,
स्वर की दुनिया से कब मेरा नाता रहा।
बन के वीणा के स्वर कन्ठ में तुम बसे,
स्वर सज़ाने लगे , गुनु गुनाने लगे ।
ख्याल बनके यूं मन में समाने लगे,
गीत मेरे लिखो यूं सुझाने लगे।।
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