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रविवार, 25 दिसंबर 2011

बेटे का फ़ोन ----प्रेमकाव्य....सप्तम सुमनान्जलि -वात्सल्य (अंतिम ) - ..गीत-५....डा श्याम गुप्त..........

                                     कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित





              प्रेम  -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता, किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जासकता; वह एक विहंगम भाव है  | प्रस्तुत है सप्तम सुमनांजलि ...वात्सल्य..... इस खंड में वात्सल्य रस सम्बंधित पांच  गीतों को रखा गया है ....बेटी,  पुत्र,  पुत्र-वधु ,  माँ,  बेटे का फोन .......|  प्रस्तुत है  --------पन्चम व अंतिम गीत----बेटे का फ़ोन .......


बेटे का है फोन, की माँ तुम,
बस चिंता मुक्त रहो |
बहुत काल तक चिंता की, पर- 
अब तुम उन्मुक्त रहो ||

दूर बहुत हूँ लेकिन यह मन,
यादों में है भटका |
समझ रहा हूँ तेरा मन भी,
हम दोनों में अटका ||

हम तो चिंता मुक्त रहे थे,
पर हम कभी न भूले, |
कैसे कैसे हमें झुलाए,
वो सावन के झूले ||

मुझको याद बहुत आती हैं,
तेरी मीठी बातें |
लोरी गाथा और कथाएं ,
वो बचपन की रातें || 

मुझको याद सदा आती हैं,
तेरी डांट सुहानी |
पापा डांटा करते थे जब,
हम करते मनमानी ||

रोज सवेरे उठो शाम को,
जल्दी ही सोजाओ |
दिन में कस कर पढो, रात में-
सपनों में खोजाओ ||

हर  घटना पर एक उदाहरण ,
कहना एक कहानी |
वेद पुराण और रामायण ,
पंचतंत्र की वाणी ||

रात देर तक जाग जाग हम,
करते खूब पढाई |
तूने रातों जाग जाग कर,
काफी चाय बनाई ||

घर से बाहर देर होगई,
तेरा घबरा जाना |
कालिज से लेकर, चूहे के-
बिल तक फोन घुमाना ||

याद मुझे आती रहती हैं ,
घर आँगन की बातें |
छत पर चढ़कर आम तोड़ना,
निशि, तारों की बातें ||

तेरी सीख त्याग इच्छा से,
हम यहाँ पहुँच पाए |
पढ़ लिख योग्य बने और विद्या-
धन पद वैभव पाए ||


साथ हमारे ही अब रहना,
दूर दूर क्या रहना |
पूरा होगा तेरा सुन्दर,
मधुर सलोना सपना ||


                                                     ---क्रमश ...अष्टम सुमनांजलि...सहोदर व सख्य प्रेम...

रविवार, 18 दिसंबर 2011

माँ......प्रेमकाव्य....सप्तम सुमनान्जलि -वात्सल्य (क्रमश:)- ..गीत 3-.माँ.....डा श्याम गुप्त..........

                                 कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित



              प्रेम  -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता, किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जा

सकता; वह एक विहंगम भाव है  | प्रस्तुत है सप्तम सुमनांजलि ...वात्सल्य..... इस खंड में वात्सल्य रस सम्बंधित पांच  गीतों को रखा गया है ....बेटी,  पुत्र,  पुत्र-वधु ,  माँ,  बेटे का फोन .......|  प्रस्तुत है  तुर्थ  गीत 
 
                   ---माँ......
जितने भी पदनाम सात्विक ,
उनके पीछे  'मा' होता है |
चाहे धर्मात्मा,  महात्मा,
आत्मा हो अथवा परमात्मा ||

जो महान सत्कर्म जगत के,
उनके पीछे 'माँ'होती है|
चाहे हो वह माँ कौसल्या,
जीजाबाई या यशुमति माँ||

पूर्ण शब्द माँ, पूर्ण ग्रन्थ माँ ,
शिशुवाणी का प्रथम शब्द माँ |
जीवन की हरएक सफलता,
की पहली सीढ़ी होती माँ ||

माँ अनुपम है वह असीम है,
क्षमा दया श्रृद्धा का सागर |
कभी नहीं रीती होपाती,
माँ की ममता रूपी गागर ||

माँ मानव की प्रथम गुरू है,
सभी सृजन का मूल-तंत्र माँ |
विस्मृत ब्रह्मा की स्फुरणा,
वाणी रूपी मूल-मन्त्र माँ ||

सीमित तुच्छ बुद्धि यह कैसे,
 कर पाए माँ का गुण गान |
'श्याम' करें पद-वंदन माँ ही ,
करती वाणी-बुद्धि  प्रदान ||

गुरुवार, 8 दिसंबर 2011

प्रेमकाव्य....सप्तम सुमनान्जलि -वात्सल्य (क्रमश:)- ..गीत 3-..पुत्रवधू ....डा श्याम गुप्त..........

                                         कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित

           प्रेम  -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता, किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जा सकता; वह एक विहंगम भाव है  | षष्ठ सुमनान्जलि में रस -श्रृंगार  के गीतों को पोस्ट किया गया था | प्रस्तुत है सप्तम सुमनांजलि ...वात्सल्य..... इस खंड में वात्सल्य रस सम्बंधित पांच  गीतों को रखा गया है ....बेटी,  पुत्र,  पुत्र-वधु ,  माँ,  बेटे का फोन .......|  प्रस्तुत है  तृतीय गीत ...पुत्र वधू......
 
पुत्रवधू, कुलवधू हमारे-
दूर रहो या पास |
मन में बिटिया बन कर रहती,
सदा हमारे साथ ||
 
तुम हो प्रिय सुत की प्रिय भामिनि,
प्रिय मन का आभास |
सदा रहो तुम अचल प्रेम में ,
अटल प्रेम विश्वास |
मन मंदिर में बेटी बनकर,
सदा हमारे पास   ||
 
 तुम हो पुत्री गौरव-कुल की,
 पति कुल का विश्वास |
प्रीति-रीति पर चलते रहना,
रखना कुल के लाज ||
मन में रहती बिटिया बनकर ,
सदा हमारे साथ ||

दूर देश से आकर तुमने,
इस कुल को अपनाया |
बना रहेगा तेरे ऊपर,
प्यार का ये साया |
सुख में दुःख में सदा रहेंगे,
हे प्रिय! तेरे साथ |
 
मन में रहना बेटी बनकर ,
सदा हमारे पास ||

बुधवार, 7 दिसंबर 2011

प्रेमकाव्य-महाकाव्य. सप्तम सुमनान्जलि---वात्सल्य .......डा श्याम गुप्त....

                                     कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित







रविवार, 13 नवंबर 2011

प्रेमकाव्य-महाकाव्य. षष्ठ सुमनान्जलि (क्रमश:)-खंड ग-वियोग श्रृंगार ....अंतिम .गीत .९ ..डा श्याम गुप्त

                               कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित




           प्रेम  -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता, किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जा सकता; वह एक विहंगम भाव है  | अब तक प्रेम काव्य ..षष्ठ -सुमनान्जलि....रस श्रृंगार... इस सुमनांजलि में प्रेम के श्रृंगारिक भाव का वर्णन किया गया ..तीन खण्डों में ......(क)..संयोग श्रृंगार....(ख)..ऋतु-श्रृंगार तथा (ग).. वियोग श्रृंगार ....में दर्शाया गया है..... 

                 खंड ग ..वियोग श्रृंगार -- में नौ ९ रचनाएँ हैं  -पागल मन,  मेरा प्रेमी मन,  कैसा लगता है,  तनहा तनहा रात में,  आई प्रेम बहार,  छेड़ गया कोई,  कौन,  इन्द्रधनुष एवं  बनी रहे ......प्रस्तुत है  नवम व अंतिम गीत....बनी रहे ......
वह घनीभूत पीडा सी  नित  ,
जो मेरे मन में बनी रहे |
है महक पुरानी  यादों की,
बन कर इक बदली घनी रहे ||

स्वच्छंद गगन में मन मेरा,
बन कर पंछी उड़ना चाहे |
वह पीर, चांदनी का वितान,
बन, मन-अम्बर पर तनी रहे ||

जब बागों में बगरे वसंत,
तन मन चाहे सुरभित होना |
यादें बन कर मधुरिम पराग,
पीड़ा पुष्पित कर जाती हैं ||

स्वप्नों में तुम जब आते हो,
नैनों से नैन मिलाते हो |
उस प्यार भरे स्वप्निल पल में,
पलकों में ही मुस्काते हो ||

अब भी है तेरी आँखों में,
वह प्यार-पगी मीठी भाषा |
जिससे मिलती है जीवन को,
अपनेपन की नव परिभाषा ||
अब नहीं सुहाते वन-उपवन,
रोमांश-खुशी, उन्मुक्त गगन |
ये यादें मन की पूंजी हैं ,
चाहे बन पीड़ा घनी रहे ||

यह पीड़ा ही सुरभित होकर,
इस तन मन को महकाती है |
मीठी मीठी यह पीर सदा,
चाहूँ तन मन में बनी रहे ||

है महक पुरानी यादों की,
बनकर नित बदली घनी रहे |
यह घनीभूत पीड़ा सी नित,
इस मन-मंदिर में बनी रहे ||

  

शुक्रवार, 11 नवंबर 2011

प्रेमकाव्य-महाकाव्य. षष्ठ सुमनान्जलि (क्रमश:)-खंड ग-वियोग श्रृंगार ..गीत ८ ...डा श्याम गुप्त

                                         कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित

           प्रेम  -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता, किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जा सकता; वह एक विहंगम भाव है  | अब तक प्रेम काव्य ..षष्ठ -सुमनान्जलि....रस श्रृंगार... इस सुमनांजलि में प्रेम के श्रृंगारिक भाव का वर्णन किया गया ..तीन खण्डों में ......(क)..संयोग श्रृंगार....(ख)..ऋतु-श्रृंगार तथा (ग).. वियोग श्रृंगार ....में दर्शाया गया है..... 
                 खंड ग ..वियोग श्रृंगार --ज-पागल मन,  मेरा प्रेमी मन,  कैसा लगता है,  तनहा तनहा रात में,  आई प्रेम बहार,  छेड़ गया कोई,  कौन,  इन्द्रधनुष एवं  बनी रहे ......नौ रचनाएँ प्रस्तुत की जायंगी | प्रस्तुत है.....
  अष्ठम गीत .....
     
     'न्द्नु'
 
तुम प्यार का इन्द्रधनुष,
   नयनों में सजा लेना ।             
      मैं याद तुम्हारी प्रिय,
        इस मन में बसा लूंगा ॥

जब जब दिल चाहेगा,
        तुमसे मिलने आना ।
               यादों की थपकी दे,
                     सपनों में भुला दूंगा॥   

जब पन्छी गायेंगे,
       तेरे सुर मे गाना ।
            मैं तेरी गुन गुन को,
                     ओठों पै सजा लूंगा ॥

जब मेरे गीत, पवन-
      लहरा कर के गाये ।
           उस प्यार सुरभि को तुम,
                 सांसों में बसा लेना  ॥

जब प्यार भरे पल की,
        यादें मन भर लायें ।
             सपनों का ताज महल,
                  यादों में सजा लेना ॥

तुम प्यार का इन्द्रधनुष,
       नयनों में सजा लेना ।
           यादों की महक तेरी,
                मैं दिल में बसा लूंगा ॥




गुरुवार, 27 अक्टूबर 2011

प्रेमकाव्य-महाकाव्य. षष्ठ सुमनान्जलि (क्रमश:)-खंड ग-वियोग श्रृंगार ..गीत ७ ...डा श्याम गुप्त

                                                  कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित





           प्रेम  -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता, किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जा सकता; वह एक विहंगम भाव है  | अब तक प्रेम काव्य ..षष्ठ -सुमनान्जलि....रस श्रृंगार... इस सुमनांजलि में प्रेम के श्रृंगारिक भाव का वर्णन किया गया ..तीन खण्डों में ......(क)..संयोग श्रृंगार....(ख)..ऋतु-श्रृंगार तथा (ग).. वियोग श्रृंगार ....में दर्शाया गया है..... 
                 खंड ग ..वियोग श्रृंगार --जिसमें --पागल मन,  मेरा प्रेमी मन,  कैसा लगता है,  तनहा तनहा रात में,  आई प्रेम बहार,  छेड़ गया कोई,  कौन,  इन्द्रधनुष एवं  बनी रहे ......नौ रचनाएँ प्रस्तुत की जायंगी | प्रस्तुत है.. सप्तम गीत ..कौन ....
 
मन की वीणा के तारों को
     छेड़ गया फिर कौन?
कानों में कह प्यारी गुनगुन ,
     कौन होगया मौन ?
मन की वीणा के तारों को,
    छेड़ गया फिर कौन ||

किसने दी आवाज़ दूरसे ,
     हो द्रुम-दल की ओट |
रस रंग सुमधुर टेर लगी जब ,
     लगे लरज़ने होठ |
मंद मंद स्वर झनका  पायल,
    दूर होगया कौन ?
मन की वीणा के तारों को,
    छेड़ गया फिर कौन ||

किसने  तानी हरी चुनरिया,
     बासंती  परिधान |
लहर लहर झूमे पुरवाई ,
     भ्रमर करें गुणगान |
कुशुम शरों के घाव लगाकर,
    चला  गया फिर कौन |
मन की वीणा के तारों को, 
    छेड़ गया फिर कौन ||