आस्थाएं ,
धर्म की,ज्ञान की या कर्म की;
मानव ही बनाता है।
सम्यगज्ञान,सम्यग दृष्टिकोण ,सम्यग भाव ,
एवं सम्यग व्यवहार से सजाता है।
ताकि ,जीवन चलता रहे ,
प्रगति के पथ पर ,
सहज,सरल,सानंद।
समाज की धारा बहती रहे ,
सतत ,अविरल,गतिरोध रहित ,
बहती नदिया के मानिंद ।
जन जन को उपलब्ध रहे ,एक समान ,
रोटी,कपडा और मकान।
आस्थाएं ही बन जातीं हैं ,
नियम ,कायदे ,क़ानून व उनका सम्मान ,
आस्था बन जाती है,
पूजा और भगवान्।
ताकि मानव हो एक समान ,
इंसान बन कर रहे -इंसान।
आस्था जुडी है ,रोटी से ।
आस्था से यदि utpatti होती है ,
भ्रम की,मिथ्याभिमान की ;
आस्था से यदि उत्पत्ति होती है ,
असमानता की ,सामाजिक विद्रूपता की ,
अशांति की ;
आस्था यदि भंग करती है ,सामाजिक तादाम्य को ,
आस्थाएं यदि असम्प्रक्त हैं ,
जन जन की दैनिक समस्याओं से ,
भावनाओं से,आवश्यकताओं से ;
तो वह रोटी -विहीन आस्था ,
आस्था नहीं है।
रोटी जुडी है ,आस्था से ।
सदियों पहले , जब मानव ने ,
दो पैरों पर चलना सीखा ;
रोटी को दूसरों से बांटकर खाना सीखा ;
भाई भूखा न रहे ,
इस भावना में जीना सीखा ;
आस्था मुखरित हुई ,
रोटी आस्था में समाहित हुई ।
संगठन की आस्था व्यवहारोन्मुखी हुई ,और -
प्रगतोन्मुखी हुआ समाज ।
आस्था प्रगति की कुंजी है ,
सबको समान ,ससम्मान रोटी की ,
गारंटी है ,पूंजी है।।
सिर्फ़ स्वयं के लिए कमाना,खाना ,
व्यक्ति का रोटी के लिए बिक जाना ,
आस्था विहीन रोटी है , जो-
मिथ्या ज्ञान,मिथ्या दृष्टिकोण ,मिथ्या भावःव-
मिथ्या व्यवहार को उत्पन्न करती है ;
असामाजिकता उत्पन्न करती है ,
आस्था हीन रोटी
पतनोन्मुखी है ॥
साहित्य के नाम पर जाने क्या क्या लिखा जा रहा है रचनाकार चट्पटे, बिक्री योग्य, बाज़ारवाद के प्रभाव में कुछ भी लिख रहे हैं बिना यह देखे कि उसका समाज साहित्य कला , कविता पर क्या प्रभाव होगा। मूलतः कवि गण-विश्व सत्य, दिन मान बन चुके तथ्यों ( मील के पत्थर) को ध्यान में रखेबिना अपना भोगा हुआ लिखने में लगे हैं जो पूर्ण व सर्वकालिक सत्य नहीं होता। अतः साहित्य , पुरा संस्कृति व नवीनता के समन्वित भावों के प्राकट्य हेतु मैंने इस क्षेत्र में कदम रखा। कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित......
बुधवार, 27 मई 2009
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15 टिप्पणियां:
Dr. Shyam Ji,
A good poem eloborating civilaization and social values.
Mukesh Kumar Tiwari
http://tiwarimukesh.blogspot.com
सत्य कहा...यथार्त लिखा...........आस्था ही तो जीवन है
"आस्था प्रगति की कुंजी है ,
सबको समान ,ससम्मान रोटी की ,
गारंटी है ,पूंजी है।"
आस्था, प्रगति, सम्मान और रोटी। गहन विचार और भाव भरे हैं, आप की इस कविता में।
रचते रहें। अभिव्यक्ति के अकाल में कुछ तो जीवनी शक्ति भरेगी !
कृपया word verification रखा हो तो हटा दें।
धन्यवाद्
bahut acha laga apki kavita padkar...
sakhi
विचार दृष्टिकोण की ठीक दिशा.
बेहतर है श्रीमान...
शुभकामनाएं.....
umda...bahut umda vichar aur utna hi pyara shabd-vinyas...
BADHAI
हिंदी ब्लॉगिंग जगत में आपका स्वागत है. हमारी शुभ कामनाएं आपके साथ हैं । अगर वर्ड वेरीफिकेशन को हटा लें तो टिप्पणी देने में सुविधा होगी आसान तरीका यहां है ।
narayan narayan
आप की रचना प्रशंसा के योग्य है . लिखते रहिये
चिटठा जगत मैं आप का स्वागत है
गार्गी
आपका ब्लॉग अच्छा लगा
धन्यवाद ..तिवारी जी ,नासवा जी, व गिरिजेश जी...आभार ..
धन्यवाद सखी समय व रवि जी ..और खत्री जी...
--धन्यवाद अनिल जी व नारद जी...नारायण नारायण
--धन्यवाद वेब दुनिया जी ..
धन्यवाद संगीता जी ..आभार..
धन्यवाद गार्गी जी ..आभार...
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