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शुक्रवार, 5 जून 2009

क्रष्ण लीला - - १.-रास व महारास-कुन्डली छन्द

            (क). रास- न्रित्य, गायन वादन
गाते धुन वन्शी रखे,  ओठों पर घन श्याम,
न्रत्य राधिका कर रहीं      ब्रन्दावन के धाम।
व्रन्दावन के धाम,न्रत्य रत    सब ही गोपीं,
कुसुमा ललिता आदिसभी राधा सखि जो थीं।
थकीं गोपियां    पैर न थक पाते     राधा के,
जब तक’श्याम, श्याम रहते वन्शीधुन गाते।

             (ख) रास

व्रन्दावन के कुन्ज में,रचें रास अभिराम,
झूमें गोपी-गोपिका ,नाचें राधा-श्याम  ।
नाचें राधा श्याम,पूछते   ओर बतलाते,
किसने क्या-क्या देखा मथुरा आते-जाते।
कौन वर्ग,सरदार  विरोधी हैं शासन के,
श्याम, पक्ष में आजायेंगे व्रन्दावन के   ।

          (ग). महारास

सखियां  सब   समझें यही,  मेरे ही   संग   श्याम,
सभी  गोपियां   समझतीं,  मेरे  ही     घनश्याम   ।
मेरे ही  घनश्याम,  श्याम संग   राधाजी मुस्कातीं,
भक्ति-भाव,तद रूप,स्वयम सखियां कान्हा होजाती।
एक ब्रह्म, भा्षै कण-कण,माया वश सबकी अंखियां,
मेरे ही संग  श्याम”  श्याम’ समझें    सब सखियां॥   
                              -क्रमशः 

5 टिप्‍पणियां:

Urmi ने कहा…

मैं कृष्ण भगवान की भक्त हूँ इसलिए आपकी पोस्ट ने तो मेरे दिल को छू लिया! आपकी हर एक ग़ज़ल और कविता लाजवाब है!

डा श्याम गुप्त ने कहा…

भक्त के लिये और भी क्रिष्ण लीलायें पोस्ट की जायेंगीं।

बेनामी ने कहा…

MAI APSE BAT KARNA CHAHTA HU

डा श्याम गुप्त ने कहा…

धन्यवाद बेनामी जी....अपना ईमेल बतायें य फ़ोन न. जैसा ठीक समझें....

Unknown ने कहा…

आपका हार्दिक आभार सर
आपका हर वाकया दिल छु जाता हैँ