कर्म प्रधान जगत में जग में ,
प्रथम पूज्य ,हे सिद्धि विनायक !
कृपा करो हे बुद्धि विधाता ,
रिद्धि -सिद्धि दाता गण-नायक ।
श्याम ह्रदय को पुष्पित कर दो ,
प्रेम शक्ति से यह मन भरदो ।
आदि लेख लेखक ,हे गणपति !
लेखन प्रेम पयोनिधि करदो ।
पंथ प्रेम का महा कठिन प्रभु ,
सिद्धि सदन तुम सिद्धि प्रदाता ।
द्वार पडा हे गौरी- नंदन !
भक्ति कृपा वर दो ,हे दाता !
साहित्य के नाम पर जाने क्या क्या लिखा जा रहा है रचनाकार चट्पटे, बिक्री योग्य, बाज़ारवाद के प्रभाव में कुछ भी लिख रहे हैं बिना यह देखे कि उसका समाज साहित्य कला , कविता पर क्या प्रभाव होगा। मूलतः कवि गण-विश्व सत्य, दिन मान बन चुके तथ्यों ( मील के पत्थर) को ध्यान में रखेबिना अपना भोगा हुआ लिखने में लगे हैं जो पूर्ण व सर्वकालिक सत्य नहीं होता। अतः साहित्य , पुरा संस्कृति व नवीनता के समन्वित भावों के प्राकट्य हेतु मैंने इस क्षेत्र में कदम रखा। कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित......
मंगलवार, 12 मई 2009
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1 टिप्पणी:
jai ganesh ji ki
apne blog ki shuruaat ganesh ji ki vandana se ki dekh kar khushi hui bahut...
aur ye bhi bahut achi likhi hai
regards
sakhi
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