saahityshyamसाहित्य श्याम

यह ब्लॉग खोजें

Powered By Blogger

सोमवार, 25 मई 2009

बीज कविता का

बीज कविता का सदा मन में बसा होता है
कोई सींचे बनके अंकुर ये हरा होता है।

चाहे हो प्यार या इनकार हो प्रीति खुदा की,
खिलती है पुष्प बनी कालिका कोई कविता की।
उठाती है भीनी महक उमडे हुए भावों की ,
फैलती है तभी खुशबू चमन में ग़ज़लों की।
गीत निर्झर सा तभी दिल में सजा होता है ।

देश की और उठी हों जो निगाहें कोई,
देश द्रोही बना आतंक मचाये कोई।
त्रस्त होजायें सभी जन जो अनाचारों से,
ग्रस्त संस्कृति भी जो होती हो अप-विचारों से।
मन में आक्रोश का जब भाव भरा होता है।

प्रभु की मिलजाए सहज भक्ति कृपा हो जाए,
प्रीति ईश्वर की बने नीति मन में रम जाए।
लीन तन मन, पर -हित में ,प्रभु समर्पण में ,
माँ की होती है कृपा ,मूक मुखर होजाए।
भाव मन में तभी कविता का उदय होता है ॥


2 टिप्‍पणियां:

Urmi ने कहा…

पहले तो मैं आपका तहे दिल से शुक्रियादा करना चाहती हूँ कि आपको मेरी शायरी पसंद आई !
आपने इतनी ख़ूबसूरत पंक्तियाँ लिखा है कि मेरी शायरी कुछ भी नहीं है आपके लेखनी के सामने!
बहुत सुंदर कविता लिखा है आपने! इतना अच्छा लगा कि कहने के लिए अल्फाज़ नहीं है!

डा श्याम गुप्त ने कहा…

उर्मी , एक नव-अगीत है-

वाचालता ,
कब कर पाती है,
वह भाव सम्प्रेषण;
जो होता है-
मूक अभिव्यक्ति में,
मौन मुखरता में ॥