जल बरसत जस झरत सरस रस ।
लहर लहर नद , जलद गरज नभ,
तन मन गद गद ,उर छलकत रस ।
जल थल चर सब जग हलचल कर,
जल थल नभ चर ,मन मनमथ वश।
सजन लसत,धन ,न न न करत पर,
मन मन तरसत ,नयनन मद बस ॥
साहित्य के नाम पर जाने क्या क्या लिखा जा रहा है रचनाकार चट्पटे, बिक्री योग्य, बाज़ारवाद के प्रभाव में कुछ भी लिख रहे हैं बिना यह देखे कि उसका समाज साहित्य कला , कविता पर क्या प्रभाव होगा। मूलतः कवि गण-विश्व सत्य, दिन मान बन चुके तथ्यों ( मील के पत्थर) को ध्यान में रखेबिना अपना भोगा हुआ लिखने में लगे हैं जो पूर्ण व सर्वकालिक सत्य नहीं होता। अतः साहित्य , पुरा संस्कृति व नवीनता के समन्वित भावों के प्राकट्य हेतु मैंने इस क्षेत्र में कदम रखा। कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित......
1 टिप्पणी:
ajab!
gazab!
saras!
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