यादों के ज़जीरे उग आए हैं ,
मन के समंदर में ;
कश्ती कहाँ-कहाँ लेजायें हम ।
दर्दे दिल उभर आए हें ,ज़ख्म बने ,
तन की वादियों में ;
मरहम-इश्क कहाँ तक लगाएं हम ।
तन्हाई के मंज़र बिछ गए हैं ,
मखमली दूब बनकर ;
बहारे हुश्न कहाँ तक लायें हम ।
रोशनी की लौ कोई दिखती नहीं ,
इस अमां की रात में ;
सदायें कहाँ तक फैलाएं हम।
वस्ल की उम्मीद ही नहीं रही श्याम ,
पयामे इश्क सुनकर ;
दुआएं कहाँ तक अब गायें हम॥
1 टिप्पणी:
umda rachna!
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