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रविवार, 16 जुलाई 2023

डॉ.श्याम गुप्त की संतुलित कहानी---१७.बाहरी आदमी .......

कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित


डॉ.श्याम गुप्त की संतुलित कहानी---


                         १७.बाहरी आदमी ...


        आठवीं कक्षा उत्तीर्ण करने के उपरांत मैंने नगर के सबसे अच्छे समझे जाने वाले इंटर कालिज में नवीं कक्षा में दाखिला लिया| यह कालिज केवल अपनी ही श्रंखला वाले चर्च के प्राइमरी स्कूल या अपने ही जूनियर स्कूलों से उत्तीर्ण छात्रों को दाखिला दिया करता था या फिर गिने-चुने विशेष योग्यता प्राप्त बाहरी स्कूलों के छात्रों को विशेष दाखिला परीक्षा द्वारा |

       विशेष दाखिला परीक्षा में विज्ञान-वर्ग में केवल तीन छात्रों को चुना गया जिनमें मैं प्रथम, विजय द्वितीय राज तृतीय रहे| इसी कालिज की अपनी श्रंखला से आये हुए छात्र स्वयं को उसी स्कूल का मूल छात्र एवं हम लोगों को बाहरी छात्र समझते थे, विशेषकर उसे जो उनके ग्रुप में शामिल नहीं होता था| नारंग, कर्मजीत रमेश एवं अन्य उसी श्रंखला से आये हुए छात्र थे| रमेश मेरी गली में रहने वाला था, कुलश्रेष्ठ किसी अन्य कालिज के प्रोफ़ेसर का पुत्र था,सीधी भर्ती वाला| विजय किसी अफसर का पुत्र था, कर्मवीर नगर के डीएसपी का बेटा| नारंग शरणार्थी परिवार से था परन्तु बेच का टॉपर| नारंग कर्मवीर पक्के मित्र थे,घमंडी और स्वयं को विशिष्ट वर्ग का समझते थे| विजय ने उन दोनों से दोस्ती गाँठ ली थी, अतः तिगड्डा बन गया था| कुलश्रेष्ठ उनके साथ रहते हुए भी अलग था, कुछ सुलझा हुआ सा| राज अपनी अलग ही धुन में रहता था, वह नगर के नामी वकील का बेटा था| विज्ञान वर्ग के मूल विषयों, हिन्दी,अंग्रेज़ी,गणित,विज्ञान,जीव-विज्ञान के अतिरिक्त छटवे चयनित विषयों में मैं ही सिर्फ भूगोल,,, में था। .यह तिगड्डा अन्य अधिकाँश कला(ड्राइंग)विषय में थे| वे स्वयं को इंजीनियरिंग का विशिष्ट छात्र समझते थे|

 

         जीवविज्ञान की कक्षा समाप्त होने पर सभी छात्र पढाये गए विषय मेढ़क के रक्त-वाहिका तंत्र पर संवाद करने लगे | ह्रदय से निकली निम्न महाधमनी दो भागों इलियक धमनियों में बंट कर पैरों को रक्त प्रावाहित करती है,नारंग बतलाने लगा |

     परन्तु इलियक स्वयं पुनः दो भागों में बंटती है फीमोरल एवं सियाटिक में, मैंने कहा, यह तो सर ने बताया ही नहीं |

     वेवकूफ हो, नारंग बोला, तुम क्या टीचर से अधिक जानते हो, पुस्तक में होता तो वे पढ़ाते नहीं क्या | तुम क्या जानो, चुप रहो |’  अरे नहीं, तुमने पढ़ा नहीं है, मैं पुस्तक की बात ही कह रहा हूँ, मैंने जीव विज्ञान की पुस्तक खोलते हुए कहा|

      अरे नारंग टॉपर है कक्षा आठ का, तुम चुंगी केवह शक्ति हमें दो...’ वाले स्कूल से हो, क्या बहस करोगे, यहाँ का स्टेंडर्ड ऊंचा है, कर्मवीर कहने लगा| 

       मैं भी अपने स्कूल का टॉपर हूँ, मैंने कहा,और तुम कहाँ से आये हो, खुदा,आज की रोटी आज हमें देवाले स्कूल से और अभी भी वहीं हो| होशियार छात्र से स्कूल का स्टेंडर्ड बढ़ता है स्कूल से छात्र का नहीं |

      क्या किताब दिखा रहे हो,’कहते हुए विजय ने मेरी पुस्तक पर हाथ मार दिया|

    तुमने मेरी पुस्तक पर हाथ क्यों मारा? मैंने कहा, तो कहने लगा, लो फिर मारा, क्या कर लेगा|

     मैंने एक थप्पड़ विजय के गाल पर जमा दिया, तीनों बौखला गए|

      नारंग कर्मवीर बोले, ये चौड़ी नाक वाला बाहरी आदमी बड़ा अकड़ रहा है, बड़ा अक्लमंद बन रहा है | नारंग इसे अच्छी तरह से सबक सिखा दो, कर्मवीर कहने लगा |

     ये बाहरी आदमी क्या होता है ?”  मैंने कहा, अब तो सभी इसी स्कूल के हैं और ये सूखा पत्ता….’ मैंने नारंग की ओर देखते हुए कहा, मुझे सबक सिखाएगा!

.      तभी कक्षा में मैथ्स के टीचर ने प्रवेश किया और सभी अपनी अपनी सीटों पर चुचाप बैठ गए | कक्षा समाप्त होने पर बाहर निकलकर, नारंग कर्मवीर ने मुझे धक्का देकर कहा,बड़े अकड़ रहे हो क्या बात है|’ मैंने भी नारंग को धक्का देदिया, वह दुबला पतला था जमीन पर गिर पडा | इसकी अकल ठिकाने लगानी पड़ेगी कहते हुए, दोनों मुझसे भिड़ गए, मैं भी भिड़ गया | कुलश्रेष्ठ ने बीच बचाव करके तीनों को अलग किया| विजय मेरी तरफ देखते हुए बोला, खूब पिटे, खूब पिटे |’

    उनके ग्रुप वाले कर्मवीर भी हाँ हाँ कहने लगे |

      हाँ, दोनों को पीट दिया , मैंने कहा, “आगे से बदतमीजी की तो समझ लेना |” ‘देख लेंगे दोनों कहने लगे, तो सभी ने पुनः बीच बचाव किया | तभी अवकाश समाप्ति की घंटी बजने लगी |

      धीरे धीरे माहौल सामान्य होने लगा, परन्तु तिगड्डा अकड़ा ही रहा | इस झगड़े का मुझे लाभ हुआ| नारंग से मेरा लगातार कम्पटीशन चलता रहा | मैंने कभी उसे अपने से आगे नहीं निकलने दिया किसी भी विषय में | तदुपरांत वह तिगड्डा भी सामान्य होने लगा, हमारी आपस में बातचीत भी होने लगी |

        यूपी बोर्ड की हाईस्कूल परीक्षा शायद विश्व की सबसे बड़ी एवं कठिनतम परीक्षा है| कक्षा १० की बोर्ड की परीक्षा में अपने कालिज से केवल दो छात्र ही प्रथम श्रेणी उत्तीर्ण हुए | एक मैं स्वयं एवं अन्य प्रताप, जो एसपी सिटी का पुत्र था एवं मिड सेशन में स्थानान्तरण पर आने पर सीधे १०वीं कक्षा में दाखिल हुआ था | प्रायः सभी छात्र अलग अलग कालेजों में चले गए तथा एक दूसरे को भूल गए | मैं इंटर पास करके चिकित्सा विद्यालय में चयनित होकर एम बी बी एस करने लगा |

       काफी समय पश्चात एक बार मार्केट में नारंग से मुलाक़ात हुई |

 हेलो! कैसे हो, कहाँ हो मैंने पूछा |

  मैं रेलवे टेक्नीकल कालिज झांसी में हूँ, वह सर हिलाकर बोला |, तुम क्या कर रहे हो ?

  मैं यहीं मेडीकल कालिज में हूँ, मैंने बताया |

  ओह! डाक्टर साहब, ओके सी यू अगेन, वह हाथ मिलाकर चल दिया |

      हम पुनः कभी नहीं मिले | परन्तु मैं विचार प्रवाह में बहने लगा| ये बाहरी आदमी क्या होता है! अपने गुट से अन्य | क्यों हम प्रत्येक क्षेत्र में स्वयं का एक विशेष खांचा बना लेते हैं | एक ग्रुप, वर्ग, गुट आदि बनाकर मन को, स्वयं को एक विशिष्ट वैचारिक चारित्रिक आचरण के दायरे में कैद कर लेते हैं एवं अन्य को बाहरी आदमी समझने लगते हैं जो गुटहीन, नव-विचारवादी, निरपेक्ष होते हैं|  राजनीति, व्यापार, साहित्य, शासन, शिक्षण, व्यवस्था आदि सभी क्षेत्रों में कुछ व्यक्तियों को बाहरी समझा जाता है | हर प्रकार से उसे कम समझना ऊपर उठाने देने का प्रयत्न किया जाता है | यद्यपि सर्वदा वे ही नवीन विचारों, नवीन प्रगति, संस्कारों, क्रांतियों के वाहक होते हैं |

       जैसे साहित्य में यदि अन्य विषयों के विशेषज्ञ आते हैं तो उन्हें बाहरी समझा जाता है साहित्य से अनभिज्ञ | इसी प्रकार साहित्य की आतंरिक संरचना में गीतकार, छंदकार, नवगीतकार, हास्यकवि, व्यंगकार, स्त्री-विमर्श आदि के खांचे बनाए हुए हैं| अन्य नवीन  विचारों, तत्वों, तर्कों, विधाओं, रचनाओं एवं उनके प्रवर्तकों को अछूत समझा जाता है जमात से बाहर किसी विशेषजीनर से असम्बद्ध | जैसे आजकल अगीत कविता उसके कवियों के साथ होरहा है| यही निराला,महादेवी,प्रसाद के साथ हुआ |

       कृष्ण भी बाहरी आदमी थे| जीवन भर रहे | किसी वर्ग में, गुट में, स्वयं में सक्षम, सम्पूर्ण,निरपेक्ष| उन्होंने घोषणा की, ‘जहां धर्म वहां मैं .| उन्हें भी तत्कालीन समाज ने कहाँ मान दिया | ग्वाला,भगोड़ा जाने क्या क्या कहा गया| वे भगवान बन गए जो मानव इतिहास की पुस्तक के प्रत्येक शब्द में अन्तर्निहित हैं| और वे खांचे वाले महान व्यक्तित्व कहाँ हैं? उस पुस्तक का एक शब्द या एक पंक्ति, एक पैरा या अधिकाधिक् एक पृष्ठ ...बस |

 


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