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मंगलवार, 11 जुलाई 2023

संतुलित कहानी संग्रह का आत्म-कथ्यांकन--डॉ.श्याम गुप्त ..

                                   कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित

संतुलित कहानी संग्रह का आत्म-कथ्यांकन

       कथा संस्कृत शब्द कथ से बना है जिसका मूल अर्थ है जो कहा जाय, परन्तु विशिष्ट अर्थ में यह कहानी ही है, अर्थात किसी ऐसी निश्चित घटना या घटना समुच्चय का वर्णन जिसका कोई निश्चित विषयभाव,उद्देश्य एवं परिणाम हो| हिन्दी साहित्य कोष के अनुसार–‘किसी विशिष्ट परिस्थिति या परिस्थितियों का आदि से अंत तक युक्ति-युक्त वर्णन...| परन्तु मानव जीवन की असीमितता व्यापकता से लेखक का प्रभावित होना आवश्यक है अतः कथाकार विभिन्न घटनाओं के अंकन के अतिरिक्त स्वयं के अनुभव, स्मृतियाँ, अनुभूत घटनाओं के तथ्यों पर भी कथा कहता है,कथाकार कथा के अंत को पाठकों के लिए सोचने को भी छोड़ सकता है |   

      लिपि के आविष्कार से पहले श्रुति रूप में मौखिक कथाएं तो आदिकाल से प्रचलित हैं,विशेषकर भारत में| जिनमें लोक गाथाएँ, पद्यकविता रूप में तथा लोक-कथाओं में गद्य-कथ्य द्वारा रसमयता उत्पन्न जाती थी जो शायद विश्व में गद्य का सबसे प्राचीन रूप है| लिपि के अविष्कार के पश्चात लिखित कथा परम्परा प्रारम्भ हुई जो प्रायः आख्यान,एतिहासिक वर्णन,उपदेशात्मक जीवन व्यवहार की कथाएं थीं|

      आधुनिक कहानी भी यद्यपि श्रुति आख्यान परम्परा से ही आई है,परन्तु कुछ विद्वान् उसे पश्चिम से आयातित कहते हैं | यह भ्रम इसलिए उत्पन्न होता है कि जब लिखित कहानी परम्परा प्रारम्भ हुई उस काल में भारत पराधीन था एवं विदेशी आकाओं के पश्चिमी साहित्य संस्कृति के समक्ष गुलाम भारत की अपनी परम्पराओं,साहित्य-इतिहास दृष्टिकोण का कोई अर्थ नहीं था|   

      आधुनिक कहानी में पुरा आख्यानों आदि की भाँति कल्पनायुक्त वर्णनों का समावेश होकर यथार्थ् का वर्णन है, विकास की चेतना है| इन कथाओं का मूल पात्र केवल मानव प्राणी है कि पौराणिक काल की कथाओं की भांति अन्य जीव जंतु आदि, यदि वे हैं भी तब भी मानव आचरण के सन्दर्भ में| अनास्था एवं विश्वास की क्षीणता के इस वैज्ञानिक युग में मानव पूर्ण यथार्थवादी हो चुका है अतः कथाकार मनोविज्ञान का सहारा लेकर मानव जीवन के किसी मर्मस्पर्शी घटना, कथ्य आदि पर कथा-कहानियाँ कहता है जो मानव को अपनी व्यथा-कथा लगे और उसे रस-निष्पत्ति का आभास हो |      

       संतुलित कहानी, आधुनिक कथा-कहानी की एक विशेष धारा है | ये मूलतः सामाजिक सरोकारों से युक्त कथाएं होती है जिनमें सरोकारों को इस प्रकार संतुलित रूप में प्रस्तुत किया जाता है कि उनके किसी कथ्य या तथ्यांकन,चित्र,बिम्व या वर्णन का समाज व्यक्ति के मन-मष्तिष्क पर कोई विपरीत अनिष्टकारी प्रभाव पड़े अपितु कथ्यांकन में भावों विचारों का एक संतुलन रहे एवं समाज मानवता के उच्चादर्शों से समन्वित रहे तथा वैज्ञानिक,मनोवैज्ञानिक,दार्शनिक सामाजिक तथ्यों कथ्यों को इस प्रकार समन्वित भाव में प्रस्तुत किया जाय कि राजनैतिक, आर्थिक,सामाजिक,धार्मिक सांस्कृतिक रूप में समतामूलक संतुलन स्थापन का प्रयत्न रहे|

        जिस प्रकार बहुत सी कहानियों या सिने-कथाओं में सेक्स वर्णन,वीभत्स रस या आतंकवाद-अनाचार,अत्याचार, अपराध,वलात्कार, नारी शोषण हिंसा,डकैती,लूटपाट,द्वेष-द्वंद्व, चारित्रिक दुर्बलता,षडयंत्रों के जाल आदि के सामान्य,घिनौने या अतिशय चित्रांकन,कथन,वर्णन आदि होता है जिससे जनमानस में उसे नकारात्मक रूप में अपनाने की प्रवृत्ति व्याप्त हो सकती है| अतः संतुलित कहानियों में इन सबके वर्णन,कथ्यांकन,चित्रण, कथोपकथन से बचा जाता है |

        संतुलित कथा का इष्ट समाज की नकारात्मक आलोचना मात्र होकर,सकारात्मक उद्वेलन से यथार्थ का विवेचन कर परोक्ष मार्गदर्शन करना है तथा बिना उपदेश दिए पाठक के अंतर्मन में विसंगति से मुक्त होने का मनोभाव उत्पन्न करना होता है जो इन्हें बोथ कथाओं से पृथक करता है| लाक्षणिकता, प्रतीकात्मकता,कलात्मकता,गहन वैचारिकता के साथ-साथ रोचकता सुरुचिपूर्णता की उपस्थिति परन्तु अश्लील,अत्यंत करूण, दारुण,निर्मम भावों,संवेदनाओं तथ्यों की अति-यथार्थता की अनुपस्थिति इन्हें सामान्य आधुनिक कथाओं,लघुकथाओं से पृथक करती है |

        संतुलित कहानी, लघुकथा भी हो सकती है लम्बी कथा भी यद्यपि यह प्रायः लघु मध्यम आकार की कहानी ही होती है| कथा-साहित्य में यह विधा साहित्यभूषण डॉ.रंगनाथ मिश्र'सत्य'  द्वारा १९७५ . में आतंकवाद की विभीषिका के विरुद्ध स्थापित की गयी, जो हिन्दी जगत में आतंकवाद,अत्याचार,अनाचार शोषण के  विरुद्ध मानवीय-मनोवैज्ञानिक ढंग से वैचारिक-सांस्कृतिक जागृति उत्पन्न करने का विशिष्ट कृतित्व है एवं समाज को भटकाव से बचाने हेतु एक स्तुत्य प्रयास|

        प्रस्तुत कृति इसी प्रकार की कथाओं का संग्रह है जिनमें मानव जीवन के विविध रंगों,भावों,अनुभावों,स्मृतियों, मनोवैज्ञानिक,सामाजिक,सामयिक,बाल मनोविज्ञान,स्त्री-पुरुष विमर्श,राजनीति,संस्कृति,युवा मनोविज्ञान वरिष्ठ नागरिक समस्याएँ,प्रकृति पर्यावरण तथा एतिहासिक/ पौराणिक कथाओं कथ्यों-तथ्यों का सामयिक प्रस्तुतीकरण आदि विषय वैविध्यों को एक विशिष्ट दृष्टिकोण एवं नवीनतापूर्ण सरल,सहज एवं सम्प्रेषणीय ढंग से प्रस्तुत किया गया है| इसे रसज्ञ पाठकों,विद्वानों साहित्य मर्मज्ञों का आशीर्वाद प्राप्त हो ऐसी मेरी आकांक्षा एवं आशा है | 

 

                                                                                  

---डॉ. श्याम गुप्त

 

                                                             

 

 

                      

       

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