समय
आज जब तुम्हारे चिरंजीवी ने ,
अपनी नई खोज को बताया -
'पापा का बाल सफ़ेद हो गया '
जैसे समय रूपी चरखी की डोर,
अचानक ही तेजी से खुल गयी ;
और जीवन रूपी पतंग ,एकदम -
आसमान में ऊंची चढ़ गयी ।
यथा ,मधु यामिनी के बाद की
मोहक,स्वप्निल तुरीयावस्था -
अचानक ही भंग होगई ।
कितना हसीं था वह ,
अनंत वर्षों का , मधु दिवस,
या मधु यामिनी के रसास्वादन की,
फेनिल -स्वप्निलता में अभिभूत
एक मधुमास ,या -
पूरा मधुयुग ।
आभारी हूँ प्रिय ! तुम्हारा, सचमुच ,
इस फेनिल स्वप्निलता में ,
लंबे समय तक ,
कदम सेकदम मिलाकर
चलने के लिए।
क्योंकि ,यह आधार है,
भावी जीवन के सुख-दुःख,संघर्ष -
और आतंरिक द्वंद्वों को ,
हंस हंस कर झेलने का ;
तथा अनंत यात्रा तक,
कदम से कदम मिलाकर चलने का ,
चलते रहने के संकल्प का ॥
यादें
स्टाफ -कालिज केम्पस की सडकों पर ,
भरी दोपहरी में ,
पेड़ों की छाया के नीचे ,
जब में गुजरता हूँ ;
हाथ में फाइल लिए
ठीक समय पर क्लास में पहुँचने के लिए।
तो अनायास ही
मन में घुमड़ने लगतीं हैं
वे सब बातें ,
कालिज के जमाने की
खट्टी -मीठी यादें ।
यादें कुछ अनकही ,अधूरी बातों की,
यादें कुछ छोटी -बड़ी मुलाकातों की ,
यादें कुछ अव्यक्त ,अपरिनीत संबंधों की ,
यादें कुछ उलझे-अनसुलझे प्रश्नों की ।
पेड़ों की छाया में कदम मिलाकर -
चलते हुए दोस्तों की ।
लाइब्रेरी ,केन्टीन ,क्लास रूम के बीच-
बनते बिगड़ते रिश्तों की ।
यादें क्या हैं?
मन की लाइब्रेरी में संजो कर राखी गयी ,
पुस्तकें ,पत्रिकाएं, काम्पेक्ट डिस्क या सन्दर्भ ग्रन्थ |
जिन्हें हम जब चाहें ,किसी भी कोने से-
निकाल कर या सी डी लोड करके,
पढ़ लेते हैं ,
और जी लेते हैं,
उन भूले-बिसरे क्षणों को ॥
आहट
प्रिये!,पुनः ,
इस स्टेशन पर उतरते ही ,लगा -
जैसे तुम आज भी मेरे साथ हो ।
लजाती हुई,
सकुचाती हुई ,
नव-बधू की तरह,
उसी तरह।
यहाँ के प्रत्येक कण-कण में
तुम्हारे इज़हार की
तुम्हारे प्यार की ,खुशबू-
अभी भी बसी हुई है।
सड़क,घर,बाज़ार,क्लब ,सभी जगह ,
तुम्हारे कदमों की आहट
अभी भी सजी हुई है ;
अनश्वर ,
अनहद नाद की तरह ।
शायद ,इसीलिये कहा गया है-
शब्द अनंत है,
अमर है,
शब्द ही ईश्वर है॥
साहित्य के नाम पर जाने क्या क्या लिखा जा रहा है रचनाकार चट्पटे, बिक्री योग्य, बाज़ारवाद के प्रभाव में कुछ भी लिख रहे हैं बिना यह देखे कि उसका समाज साहित्य कला , कविता पर क्या प्रभाव होगा। मूलतः कवि गण-विश्व सत्य, दिन मान बन चुके तथ्यों ( मील के पत्थर) को ध्यान में रखेबिना अपना भोगा हुआ लिखने में लगे हैं जो पूर्ण व सर्वकालिक सत्य नहीं होता। अतः साहित्य , पुरा संस्कृति व नवीनता के समन्वित भावों के प्राकट्य हेतु मैंने इस क्षेत्र में कदम रखा। कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित......
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