saahityshyamसाहित्य श्याम

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शुक्रवार, 7 अगस्त 2009

काव्य दूत ----आगे ...

समय

आज जब तुम्हारे चिरंजीवी ने ,
अपनी नई खोज को बताया -
'पापा का बाल सफ़ेद हो गया '
जैसे समय रूपी चरखी की डोर,
अचानक ही तेजी से खुल गयी ;
और जीवन रूपी पतंग ,एकदम -
आसमान में ऊंची चढ़ गयी ।

यथा ,मधु यामिनी के बाद की
मोहक,स्वप्निल तुरीयावस्था -
अचानक ही भंग होगई ।

कितना हसीं था वह ,
अनंत वर्षों का , मधु दिवस,
या मधु यामिनी के रसास्वादन की,
फेनिल -स्वप्निलता में अभिभूत
एक मधुमास ,या -
पूरा मधुयुग ।

आभारी हूँ प्रिय ! तुम्हारा, सचमुच ,
इस फेनिल स्वप्निलता में ,
लंबे समय तक ,
कदम सेकदम मिलाकर
चलने के लिए।

क्योंकि ,यह आधार है,
भावी जीवन के सुख-दुःख,संघर्ष -
और आतंरिक द्वंद्वों को ,
हंस हंस कर झेलने का ;
तथा अनंत यात्रा तक,
कदम से कदम मिलाकर चलने का ,
चलते रहने के संकल्प का ॥


यादें

स्टाफ -कालिज केम्पस की सडकों पर ,
भरी दोपहरी में ,
पेड़ों की छाया के नीचे ,
जब में गुजरता हूँ ;
हाथ में फाइल लिए
ठीक समय पर क्लास में पहुँचने के लिए।
तो अनायास ही
मन में घुमड़ने लगतीं हैं
वे सब बातें ,
कालिज के जमाने की
खट्टी -मीठी यादें ।

यादें कुछ अनकही ,अधूरी बातों की,
यादें कुछ छोटी -बड़ी मुलाकातों की ,
यादें कुछ अव्यक्त ,अपरिनीत संबंधों की ,
यादें कुछ उलझे-अनसुलझे प्रश्नों की ।

पेड़ों की छाया में कदम मिलाकर -
चलते हुए दोस्तों की ।
लाइब्रेरी ,केन्टीन ,क्लास रूम के बीच-
बनते बिगड़ते रिश्तों की ।

यादें क्या हैं?
मन की लाइब्रेरी में संजो कर राखी गयी ,
पुस्तकें ,पत्रिकाएं, काम्पेक्ट डिस्क या सन्दर्भ ग्रन्थ |
जिन्हें हम जब चाहें ,किसी भी कोने से-
निकाल कर या सी डी लोड करके,

पढ़ लेते हैं ,
और जी लेते हैं,
उन भूले-बिसरे क्षणों को ॥


आहट

प्रिये!,पुनः ,
इस स्टेशन पर उतरते ही ,लगा -
जैसे तुम आज भी मेरे साथ हो ।
लजाती हुई,
सकुचाती हुई ,
नव-बधू की तरह,
उसी तरह।

यहाँ के प्रत्येक कण-कण में
तुम्हारे इज़हार की
तुम्हारे प्यार की ,खुशबू-
अभी भी बसी हुई है।

सड़क,घर,बाज़ार,क्लब ,सभी जगह ,
तुम्हारे कदमों की आहट
अभी भी सजी हुई है ;
अनश्वर ,
अनहद नाद की तरह ।

शायद ,इसीलिये कहा गया है-
शब्द अनंत है,
अमर है,
शब्द ही ईश्वर है॥

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