ऊंचे शिखरों पर ही ,
बर्फ जमती है,
खड्डों में नहीं;
उच्च मनोभूमि पर ही,
कार्य सिद्धि होती है,
तुच्छ विचारों से नहीं ।
वो फलदार बृक्ष,जो-
खड़े होते हैं सीना तानकर,
फल-फूल से भरपूर ;
पंछी उन्हीं पर आते हैं,
सूखे पेड़ों पर नहीं।
इसलिए ,ख़ुद को-
फलदार बनाओ यारो ;
कोई पत्थर से मारे ,तो-
फल गिराओ यारो॥
साहित्य के नाम पर जाने क्या क्या लिखा जा रहा है रचनाकार चट्पटे, बिक्री योग्य, बाज़ारवाद के प्रभाव में कुछ भी लिख रहे हैं बिना यह देखे कि उसका समाज साहित्य कला , कविता पर क्या प्रभाव होगा। मूलतः कवि गण-विश्व सत्य, दिन मान बन चुके तथ्यों ( मील के पत्थर) को ध्यान में रखेबिना अपना भोगा हुआ लिखने में लगे हैं जो पूर्ण व सर्वकालिक सत्य नहीं होता। अतः साहित्य , पुरा संस्कृति व नवीनता के समन्वित भावों के प्राकट्य हेतु मैंने इस क्षेत्र में कदम रखा। कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित......
शनिवार, 22 अगस्त 2009
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें