साहित्य के नाम पर जाने क्या क्या लिखा जा रहा है रचनाकार चट्पटे, बिक्री योग्य, बाज़ारवाद के प्रभाव में कुछ भी लिख रहे हैं बिना यह देखे कि उसका समाज साहित्य कला , कविता पर क्या प्रभाव होगा। मूलतः कवि गण-विश्व सत्य, दिन मान बन चुके तथ्यों ( मील के पत्थर) को ध्यान में रखेबिना अपना भोगा हुआ लिखने में लगे हैं जो पूर्ण व सर्वकालिक सत्य नहीं होता। अतः साहित्य , पुरा संस्कृति व नवीनता के समन्वित भावों के प्राकट्य हेतु मैंने इस क्षेत्र में कदम रखा। कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित......
बुधवार, 19 अगस्त 2009
डॉ रामाश्रय सविता का नार्वे में सम्मानित व पुरस्कृत --
नगर की प्रमुख साहित्यिक संस्था :"प्रतिष्ठा साहित्यिक एवंसांस्कृतिक संस्था "आलम बाग़ लखनऊ,उ.प्र.,भारत केअध्यक्ष साहित्यभूषण डा.रामाश्रय सविता को१६ अगस्त२००९ को नार्वे के भारतीय-नार्वेजीय सूचना औरसांस्कृतिक फॉरम , द्वारा आयोजित समारोह में सम्मानितएवं पुरस्कृत किया गया|
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