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शुक्रवार, 15 मई 2020

डा श्याम गुप्त के अभिनन्दन ग्रन्थ 'अमृत कलश---चतुर्थ पुष्प - डॉ. श्याम गुप्त के कृतित्व का संक्षिप्त परिचय – देवेश द्विवेदी देवेश.....

                                             कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित

डा श्याम गुप्त के अभिनन्दन ग्रन्थ 'अमृत कलश का लोकार्पण २२-०२-२०२० को हुआ |---तुरंत लौकडाउन के कारण कुछ विज्ञ लोगों तक नहीं पहुँच पा रही है अतः --यहाँ इसे क्रमिक पोस्टों में प्रस्तुत किया जाएगा | प्रस्तुत है --    चतुर्थ  पुष्प - डॉ.  श्याम गुप्त के  कृतित्व का संक्षिप्त परिचय – देवेश द्विवेदी देवेश.....
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.                      डॉ.  श्याम गुप्त के  कृतित्व का संक्षिप्त परिचय – 

                        
                ----देवेश द्विवेदी देवेश, महामंत्री ,नव सृजन साहित्यिक व सांस्कृतिक संस्था, लखनऊ 
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         धर्म, अध्यात्म के वातावरण, रामायण के सस्वर पाठ से दिनचर्या प्रारम्भ करने वाली व चाकी-चूल्हे से लेकर देवी-देवता, मंदिर-मूर्ति, नदी-तुलसी की पूजा अर्चना करने वाली माँ व स्वतन्त्रता संग्राम के काल में अप्रतिम राष्ट्रवादी,अपने गाँव में झंडा-गीत व देशभक्ति के गीतों के गायकों की टोली के नायक, देशभक्ति व सर्व-धर्म, सम-भाव भावना प्रधान पिता के सान्निध्य में डा श्यामगुप्त में वाल्यावस्था से ही कविता-प्रेम प्रस्फुटित हो चुका था| बचपन से ही भाई-बहनों, सहपाठियों, मित्रों, साथियों में वे आशु कवि के रूप में हर बात पर कविता बना देने वाले रूप में जाने जाते थे| कविता लिखने की प्रेरणा जूनियर कक्षा के सहपाठी मित्र श्री रामकुमार अग्रवाल से मिली जो स्वयं भी कविता करते थे | शिक्षाकाल से ही स्कूल-कालिज की पत्रिकाओं व आगरा नगर की पत्र-पत्रिकाओं में कवितायें व आलेख प्रकाशित होते रहे | सेवायोजन के काल में भी उनके आलेख एवं कवितायें तथा हिन्दी में चिकित्सा आलेख रेलवे की पत्रिकाओं, भारतीय रेलवे महिला कल्याण संगठन की पत्रिका तथा भारतीय रेल हिन्दी विभाग की पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे|  शिक्षाकाल में आगरा से प्रकाशित " युवांतर" साप्ताहिक के वे वैज्ञानिक सम्पादक-लेखक रहे एवं बाद में लखनऊ नगर से प्रकाशित " निरोगी संसार " मासिक के नियमित लेखक व सम्पादकीय सलाहकारसम्प्रति वे लखनऊ नगर की विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं के सदस्य हैं एवं देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में अनकी रचनाएँ, आलेख इत्यादि प्रकाशित होते रहते हैं|
               बहुआयामी साहित्यकार महाकवि डा श्यामगुप्त हिन्दी भाषा में खड़ी-बोली व ब्रज-भाषा एवं अंग्रेज़ी भाषाओं के साहित्य में रचनारत हैं | ब्रज क्षेत्र के होने के कारण वे कृष्ण के अनन्य भक्त भी हैं उनके पद एवं अन्य तमाम रचनाएँ कृष्ण व राधा पर आधारित हैं एवं ब्रजभाषा में काव्य रचना भी करते हैं | हिन्दी-साहित्य की गद्य व पद्य दोनों विधाओं की गीत,अगीत, नवगीत,छंदोवद्य-काव्य,ग़ज़ल,कथा-कहानी,आलेख, निवंध,समीक्षा, उपन्यास,नाटिकाएं सभी में वे समान रूप से रचनारत हैं | अनेक काव्य रचनाओं के वे सहयोगी रचनाकार हैं व कई रचनाओं की भूमिका के लेखक भी हैं| अंतरजाल( इंटरनेट )पर विभिन्न राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय ई-पत्रिकाओं के वे सहयोगी रचनाकार हैं | श्याम स्मृति The world of my thoughts .., साहित्य श्याम, हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व विजानाति-विजानाति-विज्ञान, छिद्रान्वेषी, अगीतायन आदि उनके स्वतंत्र चिट्ठे (ब्लॉग) हैं एवं वर्ल्डप्रेस डाट काम तथा अन्य कई सामुदायिक चिठ्ठों के सहयोगी रचनाकार हैं | दैनिक जागरण एवं नवभारत टाइम्स ,अमर उजाला आदि समाचार पत्रों के ब्लोग्स पर भी वे लेखन रत हैं| उनकी अपने स्वयं के विशिष्ट विचार-मंथन के क्रमिक विचार-बिंदु श्याम स्मृति के नाम से पत्र-पत्रिकाओं व अंतरजाल पर प्रकाशित होते हैं| अब तक आपके द्वारा पंद्रह  प्रकाशित पुस्तकों के अतिरिक्त  लगभग २०० गीत, २५० ग़ज़ल, नज़्म, रुबाइयां, कते, शेर आदि... ३०० अगीत छंद, ६० कथाएं व २०० से अधिक आलेख, स्त्री-विमर्श, वैज्ञानिक-दार्शनिक, सामाजिक, पौराणिक-एतिहासिक विषयों, हिन्दी व साहित्य आदि विविध विषयों पर लिखे जा चुके हैं एवं आप अनेक निवंध,समीक्षाएं,पुस्तकों की भूमिकाएं आदि भी लिख चुके हैं |
         विशिष्ट कृतित्व के रूप में साहित्य की पद्य-गीति विधा, शास्त्रीय छंद विधा, अतुकांत गीति-काव्य विधा एवं अन्य गद्य विधाओं के साथ साथ  डा श्यामगुप्त आज अगीत कविता विधा के भी एक सशक्त हस्ताक्षर हैं जो उन्होंने सर्वप्रथम अगीत कविता का प्रथम छंद विधान लिख कर सिद्ध किया है| डा गुप्त ने कई नवीन छंदों की सृष्टि भी की है ..उदाहरणार्थ.. गीति विधा के पंचक सवैया  एवं " श्याम सवैया छंद " आदि तथा .अगीत-विधा के ..लयबद्ध-अगीत, षटपदी अगीत, त्रिपदा अगीत, नव-अगीत छंद व त्रिपदा अगीत ग़ज़ल...| इंटरनेट पर हिन्दी एवं साहित्य का प्रचार-प्रसार करने में भी वे अग्रगण्य हैं|       
        डा श्यामगुप्त मानव, साहित्य व समाज-संस्कृति व जीवन से सम्बंधित प्रत्येक विषय पर रचनारत हैं| मूलतः उनके सृजन का उद्देश्य... नारी-विमर्श, वैदिक पौराणिक साहित्य उनकी जीवनोपयोगी अस्मिताओं को जनभाषा में जन-जन के सम्मुख रखकर मानव मात्र में चारित्रिक उत्थान, प्रेम, राष्ट्रवाद की उदात्त भावनाओं की पुनर्स्थापना है| अपने पुराशास्त्रीय वैदिक, पौराणिक ज्ञान-विज्ञान को सामान्य जनभाषा हिन्दी में जन जन के सम्मुख लाना भी उनका उद्देश्य है, जिनके प्रेरक राष्ट्र्वादी देशभक्ति व स्व-संस्कृति से ओतप्रोत उनके पूज्य पिता हैं |
        इस प्रकार उनके साहित्य के प्रिय मूल विषय हैं ... स्त्री-विमर्श जिसे वे स्त्री-पुरुष विमर्श  का नाम देते हैं, पुरा शास्त्रीय ग्रंथों,वेद,पुराण आदि में उपस्थित वैज्ञानिक ज्ञान व तथ्य,दर्शन,सामाजिक व व्यवहारिक जीवन-संसार के ज्ञान को जनभाषा हिन्दी में लेखन द्वारा समाज व विश्व के सामने लाना| मानव आचरण संवर्धन विषयक आलेख व रचनाएँ जो सम-
सामयिक मानव अनाचरण से उत्पन्न सामाजिक कठिनाइयों व बुराइयों को पहचानकर उनका निराकरण भी प्रस्तुत करे,जिसका स्पष्ट प्रमाण उनके द्वारा रचित कृति ईशोपनिषद का काव्य भावानुवादके रूप में है |


            डा श्यामगुप्त की साहित्यिक दृष्टि व काव्य-प्रयोजन --मूलतः नवीनता के प्रति ललक एवं रूढ़िवादिता के विरोध की दृष्टि है| साहित्य के मूलगुण-भाव-प्रवणता, सामाजिक सरोकार,जन आचरण संवर्धन हेतु प्रत्येक प्रकार की प्रगतिशीलता,नवीनता के संचरण व गति-प्रगति के वे पक्षधर हैं| कविता के मूलगुण-गेयता,लयवद्धता,प्रवाह व गति एवं सहज सम्प्रेषणीयता के समर्थन के साथ-साथ केवल छंदीय कविता,केवल सनातनी छंद,गूढ़ शास्त्रीयता,अतिवादी रूढ़िवादिता व लीक पर ही चलने के वे हामी नहीं हैं| अपने इसी गुण के कारण वे आज की नवीन व प्रगतिशील काव्य-विधा अगीत-कविता की और आकर्षित हुए एवं स्वयं एक समर्थ गीतकार व छंदीय कविता में पारंगत होते हुए भी तत्कालीन काव्यजगत के छंदीय कविता में रूढिगतिता के ठेके सजाये हुए स्वघोषित स्वपोषित संस्थाओं व उनके अधीक्षकों के अप्रगतिशील क्रियाकलापों एवं तमाम विरोधों के बावजूद अगीत कविता विधा को प्रश्रय देते रहे एवं उसकी प्रगति हेतु विविध आवश्यक साहित्यिक कदम भी उठाये जो उनके विषद अगीत-साहित्य के कृतित्व के रूप में सम्मुख आया जिसके कारण आज अगीत कविता साहित्य की एक मुख्यधारा बनाकर निखरी है | डा.श्यामगुप्त नवीन प्रयोगों, स्थापनाओं को काव्य,साहित्य व समाज की प्रगति हेतु आवश्यक मानते हैं परन्तु इसका अर्थ यह भी नहीं की साहित्य व काव्य के मूल उद्देश्यों से विरत कर दिया जाय,नवीनता के नाम पर मात्राओं,पंक्तियों को जोड़-तोड़ कर,विचित्र-विचित्र शब्दाडम्बर,तथ्यविहीन कथ्य, विरोधाभासी देश,काल व तथ्यों को प्रश्रय दिया जाय, यथा वे कहते हैं कि..
       साहित्य सत्यम शिवम् सुन्दर भाव होना चाहिए ,
                 साहित्य शुभ शुचि ज्ञान पारावार होना चाहिए |’

           डा श्यामगुप्त की शैली मूलतः उद्बोधन, देशप्रेम, उपदेशात्मक, गवेषणात्मक व दार्शनिक है जो यथा-विषयानुसार होती है| श्रृंगार की एवं ललित रचनाओं में लालित्यपूर्ण अलंकारयुक्त शैली में दोहे,पद,सवैये,कुण्डलिया आदि शास्त्रीय छंद  उन्होंने लिखे हैं| भावात्मक एवं व्यंगात्मक शैली का भी उन्होंने प्रयोग किया है | स्पष्ट भाव-सम्प्रेषण  हेतु मूलतः वे अभिधात्मक कथ्य-शैली का प्रयोग करते हैं|

       डा श्यामगुप्त की भाषा मूलतः खडीबोली हिन्दी है, वे ब्रजभाषा व अंग्रेजी में भी रचनारत हैं| भाषा-काल व विषयवस्तु के अनुसार बदलती है| गद्य रचनाओं में मूलतः आप खडीबोली,शुद्ध हिन्दी,संस्कृतनिष्ठ हिन्दी एवं कहीं कही सामान्य उर्दू मिश्रित हिन्दुस्तानी का प्रयोग करते हैं |अतुकांत व तुकांत कविताओं में शुद्ध हिन्दी व सामान्य हिन्दुस्तानी तथा ललित काव्य व छंदों में ब्रजभाषा व संस्कृतनिष्ठ शुद्ध हिन्दी का| शायरी,ग़ज़लों आदि में उर्दू-मिश्रित हिन्दुस्तानी,शुद्ध हिन्दी या ब्रजभाषा मिश्रित हिन्दी का प्रयोग करते हैं| वैज्ञानिक,दार्शनिक,वैदिक साहित्य की गंभीर रचनाओं में संस्कृतनिष्ठ हिन्दी का प्रयोग है |
         डा श्यामगुप्त के काव्य के शिल्प पक्ष पर दृष्टि के अनुसार सभी काव्य-कृतियों का अनुशीलन छंद,भाषा,शैली,शब्द-चयन, बिम्ब-विधान,रस व अलंकार योजना एवं मुहावरे,कहावतें,उदाहरण व प्रतीकों आदि काव्यतत्वों के आधार पर किया गया है | निष्कर्षतः डा श्यामगुप्त के काव्य में विभिन्न प्रकार के छंदों का प्रयोग किया गया है| सभी प्रकार के रस,अलंकार,बिम्बों का यथास्थान समुचित व प्रचुर प्रयोग किया गया है | भाषा सहज,सरल प्रवाहमयी व बोधगम्य है जो स्पष्ट भाव सम्प्रेषण के उपयुक्त है| शैली प्रायः अभिधात्मक है जो विषयानुसार लक्षणा व व्यंजनात्मक भी है| कहावतों,मुहावरों,प्रतीकों,उदाहरणों व अंतर्कथाओं,उक्ति-वैचित्र्य का प्रचुर प्रयोग हुआ है|
       आपके काव्य के भाव व वस्तुपरक पक्ष के दृष्टिगत करने पर ज्ञात होता है कि डा श्यामगुप्त ने सभी कृतियों में विविध विषयक विषय-वस्तु एवं भाव-पक्ष के सभी अंगों का समुचित एवं व्यवस्थित सुस्थापन किया है | भावपक्ष उनकी कृतियों व रचनाओं का सशक्त पक्ष है | वे प्रत्येक कृति की प्रस्तुति एवं उद्देश्य में पूर्ण रूप से सफल रचनाकार व कृतिकार सिद्ध हुए हैं|
       अगीत काव्यविधा का लक्षण काव्यग्रंथअगीत साहित्य दर्पण एवं उपन्यास इन्द्रधनुष, उपन्यास के मूल तत्वों ---कथावस्तु, पात्र व चरित्र चित्रण, कथोपकथन, देशकालवातावरण,शैली एवं भाषा तथा उद्देश्य एवं सन्देश के आधार पर लेखक पूर्णतः सफल है | इस प्रकार गद्य-साहित्य की प्रस्तुति में भी डा श्याम गुप्त एक सफल गद्य-साहित्यकार, उपन्यासकार एवं ग्रंथकार के रूप में प्रस्तुत हुए हैं|

    प्रकाशित  कृतियाँ -----
-काव्य-दूत (२००४) - नारी-विमर्श नारी जीवन एवं जीवन के विभिन्न भावों पर कविता संग्रह..
-काव्य-निर्झरिणी-( २००५) -- जीवन के विविध भावों पर तुकांत कविता संग्रह|-
-काव्य-मुक्तामृत -(२००५)--सामाजिक सरोकारों से युक्त अतुकांत कविताओं का संग्रह
-सृष्टि महाकाव्य(ईषत इच्छा या बिगबेंग-एक अनुत्तरित उत्तर )२००६- सृष्टि जीवन की उत्पत्ति पर वैज्ञानिक वैदिक मतों पर विवेचनात्मक काव्य |
-प्रेम-काव्य-( गीति-विधा महाकाव्य -२००७)-प्रेम उसके विविध रूप भावों पर महाकाव्य
 -शूर्पणखा -(काव्य-उपन्यास-२००८ )-नारी विमर्श पर..रामकथा आधारित खंड-काव्य |
-इन्द्रधनुष उपन्यास-२०११) नारी-विमर्श पर एक नवीन दृष्टि युत उपन्यास
.अगीत साहित्य दर्पण (२०१२)- अगीत कविता विधा के काव्य एवं छंद विधान पर लक्षण  ग्रन्थ,   
.ब्रजबांसुरी-(२०१२) ब्रजभाषा में विविध विधाओं के गीतों-छंदों,कविताओं का सन्ग्रह  
१०.कुछ शायरी की बात होजाए(२०१४)उर्दू शायरी की विभिन्न विधाओं का संग्रह ..
११.अगीत-त्रयी(२०१६)-अगीत कविता-विधा के सशक्त हस्ताक्षर तीन साहित्यकारों के परिचय व रचनाओं का संग्रह
१२.ईशोपनिषद का काव्य-भावानुवाद(ईशोपनिषद के मन्त्रों का कविता रूप में भावानुवाद प्रस्तुत - )
१३.तुम तुम और तुम (श्रृंगार गीत संग्रह )
१४.काव्य-कांकरियाँ ई-बुक..( मुक्तक, मुक्तछंद आदि विभिन्न गीत-अगीत लघुकाओं  का संग्रह)...
१५.-पीर ज़माने की –ग़ज़ल संग्रह ..
      प्रकाशनाधीन कृतियाँ --- श्याम स्मृति (डा श्याम गुप्त के विभिन्न विषयक विचार-बिंदु ), श्याम अगीतिका,  जीवन दृष्टि ( जीवन व्यवहार व सदाचरण युक्त गीतों का संग्रह )
    अन्य अप्रकाशित कृतियाँ -मेरी ग़ज़ल(ग़ज़ल संग्रह),कहानी-संग्रह, लघुकथा संग्रह,  श्याम दोहा संग्रह,निबंध संग्रह (विभिन्न विषयक निबंधों-आलेखों का संग्रह ), काव्य प्रगतिका (बहुविधा काव्य संग्रह ) श्याम पदावली आदि |
    डा श्यामगुप्त की प्रकाशित कृतियों का संक्षिप्त परिचय—---आपकी पंद्रह  पुस्तकें प्रकाशित हैं|
. काव्यदूतसर्वप्रथम प्रकाशित कृति काव्यदूत २००४ ई में प्रकाशित हुई, यह काव्य-सन्ग्रह  प्रारम्भिक बाल्यकाल की स्वप्निल स्मृतियों से लेकर, किशोरावस्था की प्रेमिल भावनाओं, युवावस्था की सौन्दर्यमय अभिव्यक्तियों की स्मृतियाँ एवं उन्मुक्त जीवन की तरंगों व जिजीविषा, श्रृंगारिक भावनाओं एवं गृहस्थ जीवन, सांसारिक जीवन, जीवन-दर्शन, अध्यात्म व मोक्ष तक का विवरण तुकांत व अतुकांत छोटी-छोटी रचनाओं की शब्द-तूलिकाओं द्वारा उकेरे गए भावचित्रों से किया गया  हैं, जिनके मूल में अध्यात्म व स्त्री-विमर्श है जैसा कि कवि स्वयं अपने आत्म कथ्य में कहता है ...”जीवन तत्व स्वयं जिसका प्रलेख है एवं परम सत्ता स्वयं को व्यक्त करने हेतु जिसका आलंबन लेती है उस अखंड मातृ-सत्ता से अन्यथा आलंबन इस संसार चक्र को समझने के लिए और क्या हो सकता है...” | पत्नी श्रीमती सुषमा गुप्ता को समर्पित, 80/- मूल्य की यह पुस्तक सुषमा प्रकाशन, आशियाना, लखनऊ से प्रकाशित है |   
.काव्य निर्झरिणीपूज्य पिता व माता को समर्पित यह कृति २००५ ई में सुषमा प्रकाशन, आशियाना, लखनऊ द्वारा प्रकाशित हुई | काव्य की तुकांत कविता की विविध गीति व छंदीय विधाओं में रचित यह काव्यसंग्रह मूलतः यथार्थ जीवन के विभिन्न आयामों का सजीव चित्रण है जिसमें कवि की धार्मिक, आध्यात्मिक आस्थाएं व मान्यताएं एवं जीवन-जगत, प्रकृति, कर्म, देश-प्रेम, सामाजिक सरोकार, नीति व कविता पर अपने विचार प्रस्तुत किये हैं| कवि अपने आत्मकथ्य में कहता भी है ..” भावुक मन में जब भाव आत्मतत्व को मंथित करते हैं तो कोमल भावनाएं गेय रूप में निसृत होती हैं और कविता बन जाती हैं |”
3.काव्य मुक्तामृतअग्रज डा रामबाबू गुप्ता को समर्पित यह काव्यकृति सं २००५ ई में अखिल भारतीय अगीत परिषद, लखनऊ द्वारा प्रकाशित की गयी है | समाज, धर्म, ईश्वर, अध्यात्म, कौमी एकता, सामाजिक समस्याएं व बुराइयां, व्यक्तिगत दोष, प्रकृति, पर्यावरण, आतंकवाद व काव्य-कविता आदि विविध समस्या-प्रधान विषयों पर लेखक की मान्यताएं व विचार प्रस्तुत करती हुई काव्य की अतुकांत कविता विधा में लिखी गयी ३१ रचनाओं का संग्रह है यह कृति |  अपने आत्मकथ्य में स्वयं कवि ने लिखा है ..”...समय समय पर निसृत, मन की भावरूपी मुक्ताओं को पिरोकर बनाई गयी मालिकायें हैं| मेरे विचार से समस्या-प्रधान व तार्किक विषयों को मुक्तछंद रचनाओं में सुगमता से कहा जा सकता है जो जनसामान्य के लिए भी सुबोध होती हैं|”      
.सृष्टि- ईशत इच्छा या बिगबेंग- एक अनुत्तरित उत्तर ...एकादश सर्गों में रचित यह महाकाव्य, युगों युगों से मंथित, ब्रह्माण्ड व सृष्टि की रचना एवं ईश्वर जैसे मानव इतिहास के गूढतम दार्शनिक, आध्यात्मिक, वैज्ञानिक विषय पर एक नवीन दृष्टि है | इस महाकाव्य में सृष्टि रचना के वैदिक विज्ञान, दर्शन, अध्यात्म, धर्म एवं अन्य विविध धार्मिक मान्यताओं तथा आधुनिक वैज्ञानिक ज्ञान, खोजों व मान्यताओं का आपस में समुचित समन्वय किया गया है एवं मानवता तथा विश्व को एक सन्देश दिया गया
 है | अन्य वन्दनाओं के साथ दुष्टजन वन्दना भी की गयी है | कृति की भूमिका में आशीर्वचन रूप में पद्मश्री श्री वचनेश त्रिपाठी का कथन है ..”अखिल विश्व व मानव समाज के लिए इस महाकाव्य का सन्देश है कि सभी जड़-चेतन मात्र में एकमेव उसी परब्रह्म का स्वरुप मानकर किसी भी प्राणी को दुःख देना उचित नहीं है और ऐसा साधक-आराधक जन ही परब्रह्म को प्राप्त कर सकता है |” रचनाकार द्वारा आत्मकथ्य में कहा गया है -जब मानव ने प्रथम बार प्रकृति के विभिन्न रूपों को भय,रोमांच,कौतूहल व
आश्चर्य से देखा और सोचा कि इन सबके पीछे क्या रहस्य है, क्या इनका कोई एक संचालनकर्ता है , उसी क्षण ईश्वर का आविर्भाव हुआ और उसकी खोज के परिप्रेक्ष्य की इसी लक्ष्य यात्रा में मानव की क्रमिक उन्नति व दर्शन विज्ञान आदि के आविर्भाव की गाथा है |”  
पुत्र व पुत्रवधू एवं पुत्री-जामातृ को समर्पित इस कृति का प्रकाशन सं २००६ ई में अखिल भारतीय अगीत परिषद् ,लखनऊ द्वारा किया गया है |
.प्रेमकाव्य- आराध्या सर्वात्ममयी प्रेमवल्लभा श्यामप्रिया राधाजी को समर्पित यह महाकाव्य एकादश सर्गों में रचित है जिन्हें नवीन-नवीन प्रयोगधर्मी रचनाकार डा श्यामगुप्त जी ने सुमनांजलि का नाम दिया है | अनुक्रमणिका का भी आपने काव्य-सुमनवल्लरी से नामकरण किया है | सर्ग के उपखंडों को पुष्प के नाम से कहा गया है | इस प्रकार इस महाकाव्य में एकादश सुमनान्जलियों में प्रेम जैसे मनोभाव के विविध रूपों की सांगोपांग तत्व व्याख्या मनोवैज्ञानिक ढंग से की गयी है जो प्रेम की उत्पत्ति, कारक एवं प्रत्येक रूपभाव से क्रमिक सोपानों में संसार, वात्सल्य, श्रंगार अदि से ऊंचाई की ओर उठते हुए अध्यात्म व अमृतत्व, मोक्ष  तक पहुंचता है जो भारतीय संस्कृति एवं जीवन का मूल लक्ष्य है | गजानन, सरस्वती वंदना के साथ साथ प्रेम से सम्बंधित सभी देव, उपदेव, भाव आदि १० वन्दनाएँ की गयी हैंप्रथम सुमनांजलि वन्दना से सृष्टि, प्रेमभाव, प्रकृति, समष्टि-प्रेम, रस श्रृंगार, वात्सल्य,सहोदर, सख्य,से होते हुए भक्ति, अध्यात्म एवं अंत में एकादश सुमनांजलि अमृतत्व शीर्षकों में विभाजित है | महाकाव्य में छंदोबद्ध काव्य के विविध छन्दानुशासनों, छंदों, गीतों आदि छंद वैविध्य का प्रयोग किया गया है | यह किसी मनोभाव को लेकर, उसको नायकत्व प्रदान करके लिखा गया अनूठा महाकाव्य है | यह रचना सं २००७ ई में प्रतिष्ठा साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था, लखनऊ द्वारा प्रकाशित की गयी है | डा सरला शुक्ल पूर्व अध्यक्ष हिन्दी विभाग ल.विवि, डा किशोरी शरण शर्मा, डा हरीशंकर शर्मा प्रोफ हिन्दी विभाग लविवि एवं श्री दिवाकर पांडे, पत्रकार हैदरावाद द्वारा भूमिकाएं लिखे गयी हैं| आत्म-कथ्य को प्रेमकथ्यनाम देते हुए डा श्याम गुप्त प्रेम को तत्वतः इस प्रकार व्याख्यायित करते हैं.....”भाव-अभाव, व्यक्त-अव्यक्त, मूर्त-अमूर्त, सत्य-असत्य, सद-नासद में जो अंतर्द्वंद्व निहित है, जो पृथकता व संयुक्त द्वंद्व भाव है, वह प्रेम की ही अभिव्यक्ति है और इससे जो ऊर्जा- भाव, रस आदि के रूप में निसृत या आवृत्त होती है, वही प्रेम है |      
. शूर्पणखा  – पूज्य पिताजी ला. जगन्नाथ प्रसाद गुप्ता एवं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को समर्पित इस खंड-काव्य में, जिसे रचनाकार ने काव्य-उपन्यास का नाम दिया है, रामकथा की सुप्रसिद्ध खलनायिका रावण की बहन शूर्पणखाको नायिका बनाया गया है| शूर्पणखा के जीवन की कुछ अनजानी परोक्ष घटनाओं के द्वारा उसके पक्ष को रखा गया है | वह खलनायिका कैसे बनी, क्यों बनी इस चरित्र व घटनाक्रमकथा के द्वारा स्त्री-विमर्श एवं मानव-आचरण एवं स्त्री-पुरुष, समाज, राज्य आदि के आदर्श कर्तव्य तथा एक दूसरे के प्रति दायित्व व कर्तव्यों पर विभिन्न प्रश्न एवं समाधान की दिशा प्रस्तुत की गयी है | मूल रामकथा से अवांतर न होते हुए भी,लयबद्ध अगीत षट्पदी छंदों में निबद्ध यह कृति खलनायिका शूर्पणखा को नायिका के एक नवीन रूपभाव में प्रस्तुत करती है | शूर्पणखा की भावभूमि में अपने कथ्य में डा श्यामगुप्त का कहना है ,वास्तव में नारी का  प्रदूषण व गलत राह अपनाना किसी भी समाज के पतन का कारण होता है | नारी के आदर्श,प्रतिष्ठा या पतन में पुरुष का महत्वपूर्ण हाथ होता है |जब पुरुष स्वयं अपने आर्थिक,सामाजिक,पारिवारिक,धार्मिक व नैतिक कर्तव्य से च्युत होजाता है तो अन्याय,अनाचार,स्त्री-दुराचरण..पुनः अनाचार अत्याचार का दुश्चक्र चलने लगता है और समाज पर आसुरी वृत्ति हावी होने लगती है |” अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस ८ मार्च, सन २००८ ई. में प्रकाशित यह खंड-काव्य, सुषमा प्रकाशन,आशियाना,लखनऊ एवं अखिल भा. अगीत परिषद्, लखनऊ द्वारा प्रकाशित की गयी है | सरस्वती वन्दना के साथ इस खंडकाव्य में अवतारी राम के मूलरूप श्रीहरि विष्णु से विनय के रूप में श्री राम व भारत भूमि की वन्दना की गयी है
. इन्द्रधनुष उपन्यासडा श्यामगुप्त द्वारा गद्य विधा की यह कृति सुषमा प्रकाशन आशियाना, लखनऊ द्वारा चार मई २०११ ई. में प्रकाशित हुई है | स्त्री-विमर्श पर आधारित यह उपन्यास भारत देश की पूज्या देवी रूपा एवं पुरुष के कदम से कदम मिलाकर चलती हुई आधुनिका नारी को समर्पित है | दश अंकों के कलेवर लिए हुए इस उपन्यास की कथावस्तु व पृष्ठभूमि चिकित्सा महाविद्यालय की है जिसमें कथा स्मृति रूप में अतीत परिक्रमा शैली में कथ्यगत है | उपन्यास में स्त्री-पुरुष मैत्री को एक नवीन दृष्टिकोण एवं विशिष्ट दृष्टिभाव के साथ व्याख्यायित किया गया है|  रचना में नायक-नायिका द्वारा स्त्री-पुरुष आचरण के विविध सामाजिक, सामयिक, एतिहासिक, पौराणिक, मानवीय दृष्टिकोण से सम्बंधित विषयों पर घटना-क्रमों, वाद-विवाद, तर्क, प्रश्न-उत्तर के रूप में नारी उत्थान, उसकी महिमा, स्त्री-पुरुष समानता व समन्वय, मानव-चरित्र- मानवीय संवेदना,
चिकित्सा एथिक्स आदि पर एक विषद व स्पष्ट दृष्टि प्रदान की गयी है |  
.अगीत साहित्य दर्पण -  डा श्यामगुप्त द्वारा रचित यह काव्यग्रन्थ, कविता की एक विशिष्ट धारा अगीतकविता साहित्य की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, वर्त्तमान परिदृश्य एवं भविष्य की संभावनाओं के साथ ही अगीत पर की गयी शोधें, देश-विदेश में दी
गयीं विविध प्रतिक्रियाएं, अगीत कवियों, अन्य प्रकाशित कृतियाँ-महाकाव्य-खंडकाव्य, शोधग्रंथों, आलेखों के विस्तृत विवरण  एवं अगीतकाव्य का छंद विधान, शास्त्रीय विम्ब-विधान तथा अगीत की वस्तुपरक भाव सम्पदा, शिल्पपरक कलापक्ष के सांगोपांग विवरण का सर्वप्रथम शास्त्रीय प्रवंध-काव्य है | यह रचनाकारों हेतु एक मानक ग्रन्थ है | अगीत विधा के संस्थापक डा रंगनाथ मिश्र सत्यएवं अगीत काव्य के सशक्त हस्ताक्षर प.जगतनारायण पांडे को समर्पित यह कृति मार्च २०१२ई. में अखिल भारतीय अगीत परिषद्, लखनऊ द्वारा प्रकाशित है | इस ग्रन्थ द्वारा डा श्यामगुप्त ने अगीत कविता का मानकीकरण करके, उसे विधिवत स्थापित एवं विस्तृत किया है|
. ब्रज बांसुरीडा श्यामगुप्त जी द्वारा ब्रजभाषा में विभिन्न काव्य-विधाओं की रचनाओं का यह संग्रह उनके पूज्य पिताजी के जन्म शताब्दी वर्ष के उपलक्ष में प्रतिष्ठा साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था, लखनऊ एवं सुषमा प्रकाशन, लखनऊ द्वारा जुलाई २०१२ ई. में प्रकाशित किया गया है | रचनाकार ने इस काव्यकृति में ब्रज की संकृति व सौन्दर्य के विविध विषयक भावों को समेटते हुए, ब्रजभाषा में काव्य की प्रत्येक विधा- कुण्डली, घनाक्षरी, सवैया दोहा, वरवै व अन्य विविध शास्त्रीय छंद, मुक्त छंद, अगीत, अतुकांत गीत, गीत, नवगीत, ग़ज़ल, मुक्तक एवं स्वरचित नए छंद श्याम सवैया छंद, पंचक सवैया आदि का प्रयोग किया गया है | नवीनता के प्रयोगार्थ इस कृति में अनुक्रमणिका को भाव मंजरीएवं अध्यायों को भाव अरपनतथा रचना संख्याओं को सुमनलिखा गया है | वन्दना में वाणी-विनायक के साथ ब्रजबिहारी श्रीकृष्ण एवं ब्रजअधीक्षिका राधाजी की भी वन्दना की गयी है |
१०. कुछ शायरी की बात होजाएउर्दू शायरी की विभिन्न काव्य विधाओं की रचनाओं का संग्रह है |जिसमें शायरी व ग़ज़ल के इतिहास पर भी गहन प्रकाश डाला गया है |अखिल भारतीय अगीत परिषद् व सुषमा प्रकाशन से यह रचना मई २०१४ ई में प्राकाशित हुई |रचनाकार ने इस कृति में उर्दू शायरी की विभिन्न काव्य विधाओं शे,कता,रुबाई,नज़्म व ग़ज़ल आदि पर अपने विविध विषयक कलाम पेश किये हैं | ग़ज़ल विधा में नवीनता का प्रयोग करते हुए आपने त्रिपदा अगीत ग़ज़लनाम से ग़ज़ल का नवीन रूप प्रस्तुत किया है | कृति में डा सुलतान शाकिर हाशमी सुप्रसिद्ध उर्दू-हिन्दी साहित्यकार व पूर्व सलाहकार योजना आयोग भारत सरकार एवं डा रंगनाथ मिश्र सत्यद्वारा भावपूर्ण भूमिका प्रस्तुत की गईं है |
११. अगीत-त्रयी- अखिल भा.अगीत परिषद् के संस्थापक अध्यक्ष साहित्यभूषण डा रंगनाथ सत्य द्वारा संपादित, अखिल भारतीय अगीत परिषद्, लखनऊ  द्वारा मार्च २०१६ ई में प्रकाशित यह कृति, साहित्य जगत में काव्य की अगीत कविता विधा की व्यापकता की सफल उद्देश्य यात्रा में उसके स्तम्भ रूप, सशक्त हस्ताक्षर तीन साहित्यकार जो इस विधा के क्रमश संस्थापक, गति प्रदायक एवं स्थायित्व प्रदायक रहे हैं उनके परिचय एवं ३०-३० अगीत रचनाओं का संग्रह है | अगीत के संस्थापक डा रंगनाथ मिश्र सत्य, अगीत में प्रथम खंडकाव्य व महाकाव्य के रचयिता महाकवि प.जगत नारायण पाण्डेय एवं अगीत-विधा का प्रथम लक्षण-ग्रन्थ अगीत साहित्य दर्पण’, महाकाव्य सृष्टि ईशत इच्छा या बिगबेंग, एक अनुत्तरित उत्तरखंड-काव्य शूर्पणखातथा अगीत विधा के विभिन्न नए नए छंदों के सृजनकर्ता महाकवि डा श्यामगुप्त के परिचय एवं ३०-३० अगीत रचनाओं को प्रस्तुत किया गया है |
१२.ईशोपनिषद का काव्य-भावानुवाद- सं २०१६ ई. में प्रकाशित यह कृति डा श्याम गुप्त ने अपने पूज्य पिता स्व. श्री जगन्नाथ प्रसाद गुप्त जे की समर्पित की है | इसमें ईशोपनिषद के मन्त्रों का कविता रूप में भावानुवाद प्रस्तुत किया गया है | अपने कथ्य में लेखक ने ईशोपनिषद के बारे में विसतार से चर्चा भी की है |  विश्व के कठिनतम ग्रन्थ  एवं ज्ञान के भण्डार स्थित कठिनतम विषय को सरल व सामान्यजनग्राही भाषा व शैली में प्रस्तुति डा श्याम गुप्त का अपना प्रयोजन है जिसमें वे पूर्ण सफल हुए हैं | संस्कृत के विद्वान् व राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित प्रोफ. ओमप्रकाश पाण्डेय जी ने ‘औपनिषदिक तत्व ज्ञान का काव्यमय अनुयान’ शीर्षक से सुन्दर भूमिका लिखी है |
१३.तुम तुम और तुम  पत्नी श्रीमती सुषमा गुप्ता जी को समर्पित यह कृति एक प्रेम व श्रृंगार गीत संग्रह है जिसमें विभिन्न प्रकार के श्रृंगार व प्रेम के  विविध रूप भाव रस, भंगिमाएं , स्थितियां, संभावनाएं व कल्पनाएँ  युक्त गीतों का एक भाव संसार सजाया गया है  और वे अपने प्रयोजन में सफल हुए हैं | कृति में श्रीमती सुश्मागुप्ता जी ने ‘फिर उठी बात गीतों की’ एवं डा श्याम गुप्त ने ‘गीत कथ्य’ आत्मकथ्य में गीतों के उद्भव व विकास एवं इतिहास के बारे में विस्तार से व्याख्या भी की है |
१४.काव्य-कांकरियाँ ई-बुक..--मुक्तक, मुक्तछंद आदि विभिन्न गीत-अगीत लघुकाओं  का संग्रह है , जिसमें विभिन्न रस , भाव , स्थितियों, हास्य, व्यंग्य , प्रेम आदि विविध भाव रूपों की लघु रचनाएँ प्रस्तुत की गयी हैं |
१५.-पीर ज़माने की – विभिन्न सामयिक व सामाजिक सरोकारों से युक्त ग़ज़लों का संग्रह है  | जिसे गज़लकार डा श्याम गुप्त ने ‘अनय, अनाचार, अत्याचार , अन्याय व शोषण से पीड़ित जन मन को एवं इसके विरोध में स्वर उठाने वालों को’ समर्पित किया है |अपने कथ्य ‘बात ग़ज़ल की’ में डा श्याम गुप्त ने ग़ज़ल का उद्भव विकास व इतिहास एवं भंगिमाओं का विस्तार से वर्णन किया है | हिन्दी व उर्दू के विद्वान पूर्व सलाहकार सदस्य योजना आयोग, भारत सरकार डा सुलतान शाकिर हाशमी ने विद्वतापूर्ण सनुशंसा लिखी है |

 अन्य कृतित्व---

. डा श्यामगुप्त की कहानियाँ ----८०  कहानियां लघु, सामान्य, व बड़ी कहानियां यथा  --अतिसुखासुर, अन्त्याक्षरी, अफ़सर, क्या विज्ञान ही ईश्वर है, जीव सृष्टि की कहानी नारी से सृष्टि सारी-नर से भारी नारीपर्यावरण दिवस,  बारात कौन लाये, माँ और काजल पुराण, विकास या पतन, यक्ष-प्रश्न, मंत्री जी शहर में, रिश्ता सारमेय सुत का, साहित्य और मार्केटिंग, गट्टू पहलवान,  आठवीं रचना आदि सामाजिक, नारी-पुरुष विमर्श, पर्यावरण, साहित्य, ग्रामीण पृष्ठभूमि, सांस्कृतिक भाव आदि पर रचित हैं एवं जो विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय इंटरनेट पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं |
. डा श्यामगुप्त के आलेख  व निबंध आदि --- आधुनिक लिंग पुराण सृष्टि, व्याप्ति एवं विनाश के देव शिव ... मानव सभ्यता का प्रथम पालना की खोज, डेमोक्रेसी की जीत या मानव आचरण की हार, वर्ण और जाति, प्राचीन भारत में शल्य चिकित्सा. भ्रष्टाचार का वास्तविक दोषी कौन ?, सहजीवन-मानवता, विकास व संबंधों का आधार, सभ्यताओं का संघर्ष, अंधी दुनिया, जलप्रलय -गोंडवाना लेंड एवं भरत-खंड , आर्य भारत के मूल निवासी थे, प्रदूषण उन्मुक्ति में साहित्य की भूमिका एवं वैदिक साहित्य में पर्यावरण, सृष्टि व जीवन, महामानवों के निर्माण व सामाजिक श्रेष्ठता संवर्धन में नारी का योगदान,  काव्यानुशासन,हिन्दी के विरुद्ध षडयंत्र, छन्दानुशासन  और  गज़ल, हिन्दी -- एतिहासिक आइना एवं वर्त्तमान परिदृश्य,  वैदिक साहित्य, विज्ञान, समाज, संस्कृति, नारी विमर्श, राजनीति, व्यंग्य, चिकित्सा, मानवता , साहित्य व काव्य , एतिहासिक एवं पूरा एतिहासिक, भौगोलिक अदि विविध विषयक विषयों पर लगभग २०० आलेख जो विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साइबर पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं|
. डा श्यामगुप्त एक समीक्षक ---समीक्षाएं अगीत महाकाव्य बुद्ध कथा- कुमार तरल, कर्मवीर- लाल बहादुर शास्त्री -स्नेह प्रभा, अमेरिकी प्रवासी भारतीय:हिदी प्रतिभाएं-डा उषा गुप्ता, अगीतमालापार्थोसेन..मधु-माधुरी -श्रीमती मधु त्रिपाठी, वर्ण सन्देश- श्री धुरेन्द्र स्वरुप विसारिया प्रभंजन’..अटूट रिश्ते ( कहानी संग्रह)-डा सुरेश प्रकाश शुक्ल, अनुभूतियाँ- डा ब्रजेश कुमार मिश्र,  गुरु महात्म्य -श्री साहब दीन दीन आदि |
. पुस्तकों की भूमिकाएं - स्वर अगीत के-एक जीवन दर्शन -श्रीमती विजय लक्ष्मी नवल , मैं गधा हूँअजित कुमार वर्मा, मत्स्यावतार महाकाव्य श्री राम प्रकाश प्रकाश , अगीत गीता –बिनोद कुमार सिन्हा , अगीत अंतस के—अमिता सिंह आदि                       
.श्याम स्मृति ---विभिन्न विषयों पर डा श्यामगुप्त के विशिष्ट मौलिक विचार बिंदुओं के रूप में क्रमश प्रकाशित लगभग ३०० लघु आलेख..
.नाटिकाएं जो बोले सो कुंडी खोले एवं पति का मुरब्बा -रेलवे महिला संगठन के कार्यक्रमों में खेली गयीं नाटिकाएं

 . डा श्यामगुप्त का अंग्रेज़ी भाषा साहित्य---
कवितायें (poems) —  Tears, Why to destitch my pillow?, Lamps and life, Memories, Fault lies in me, Plasticasur - the Demon of today,  The disclosure (gazal), Let the candles ignite (gazal)etc.
आर्टिकल्स --DOCTOR PATIENT RELATIONSHIP IN VEDIK ERA, The great floods, Gondwana Land and India, The story of Atm etc.
The Valley of Flowers-…some words about……preface on the poems-collection book of Tamil english writer Dr Nebula B. Rajan of Bangalore and translated the book in Hindi poems.

.श्री जगन्नाथ प्रसाद गुप्ता स्मृति सम्मान --- साहित्य के सच्चे सेवी डा श्यामगुप्त साहित्य के प्रोत्साहन हेतु अपने पूज्य पिता स्व.ला.जगन्नाथ प्रसाद गुप्त की स्मृति में प्रति वर्ष १ मार्च साहित्यकार दिवस पर एक साहित्यकार को सम्मान-पत्र एवं नकद धनराशि देकर सम्मानित भी करते हैं|

                               

         ----क्रमश ...चतुर्थ पुष्प --

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