कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित
डा श्याम गुप्त के अभिनन्दन ग्रन्थ 'अमृत कलश का लोकार्पण २२-०२-२०२० को हुआ |---तुरंत लौकडाउन के कारण कुछ विज्ञ लोगों तक नहीं पहुँच पा रही है अतः --यहाँ इसे क्रमिक पोस्टों में प्रस्तुत किया जाएगा | प्रस्तुत है --
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२. ब्रजभाषा की रचनाएँ ----
डा श्याम गुप्त के अभिनन्दन ग्रन्थ 'अमृत कलश का लोकार्पण २२-०२-२०२० को हुआ |---तुरंत लौकडाउन के कारण कुछ विज्ञ लोगों तक नहीं पहुँच पा रही है अतः --यहाँ इसे क्रमिक पोस्टों में प्रस्तुत किया जाएगा | प्रस्तुत है --
षष्ठ पुष्प--
डा श्याम गुप्त की विविध विधाओं व विषयों सम्बंधित उदाहारण स्वरुप कुछ रचनाएँ –
१-पद्य रचनाएँ—तुकांत छंद, तुकांत कवितायेँ, गीत, नवगीत, अतुकांत कवितायें व गीत एवं अगीत रचनाएँ |
२. ब्रजभाषा की रचनाएँ --- छंद व गीत
३. उर्दू साहित्य की रचनाएँ—गज़ल, नज़्म, कते , रुबाई ,शेर आदि
४.गद्य रचनाएँ--- कहानी , आलेख, समीक्षा, भूमिका, उपन्यास, श्याम स्मृतियाँ से
५. अंग्रेज़ी साहित्य की रचनाएँ --- आलेख व कवितायें
२. ब्रजभाषा की रचनाएँ ----
श्याम सवैया छंद ---जन्म मिलै यदि....
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जन्म मिलै यदि मानुस कौ, तौ भारत भूमि वही अनुरागी |
पूत बड़े नेता कौं बनूँ, निज हित लगि देश की चिंता त्यागी |
पाहन ऊंचे मौल सजूँ, नित माया के दर्शन पाऊं सुभागी |
जो पसु हों तौ स्वान वही, मिले कोठी औ कार रहों बड़भागी |
काठ बनूँ तौ बनूँ कुर्सी, मिलि जावै मुराद मिले मन माँगी |
श्याम' जहै ठुकराऊं मिले, या फांसी या जेल सदा को हो दागी ||
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घनाक्षरी....
दहन सी दहकै द्वार देहरी दगर्- दगर,
कली कुञ्ज कुञ्ज क्यारी क्यारी कुम्हिलाई है |
पावक प्रतीति पवन परसि पुष्प पात-पात,
जारै तरु गात, डाली डाली मुरझाई है|
जेठ की दुपहरी यों तपाये अंग-प्रत्यंग,
मलय बयार मन मार अलसाई है |
तपें नगर गाँव, छाँव ढूँढि रही शीतल छाँव ,
धरती गगन, श्याम आगि सी लगाई है ||
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निकसौ न नंदलाल----
मींडि दिए गाल कान्ह, हाथन भरे गुलाल |
नैन भरे दोऊ, गुलाल और नंदलाल |
सखि किये जतन, गुलाल तौ निकसि गयो |
कज़रारे नैन दुरियो, निकसो न नंदलाल ||
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भरी उमस में... (नवगीत - ब्रजभाषा )
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आऔ आजु लगावैं घावनि पै
गीतनि के मरहम |
मन में है तेज़ाब भरौ
पर गीतनि कौ हू डेरौ |
मेरे गीतनि में ठसकी है,
दोस नांहि है मेरौ |
मेरौ अपनौ काव्य-बोधु है,
आपुनि ठनी ठसक है |
मेरी आपुनि ताल औ धुनि है,
आपुनि सोच-समुझि है |
भरी उमस में कैसें गावें
प्रेम प्रीति प्रीतम || ...................
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आई रे बरखा बहार ....( ब्रज-भाषा-गीत )
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झरर झरर झर,
जल बरसावे मेघ |
टप टप बूँद गिरें ,
भीजै रे अंगनवा ; हो ....
आई रे बरखा बहार ... हो ...||
धड़क धड़क धड,
धड़के जियरवा ..हो
आये न सजना हमार ....हो................................
घन जब जाओ तुम,
जल भरने को पुन: |
गरजि गरजि दीजो ,
पिय को संदेसवा |
कैसे जिए धनि ये तोहार ...हो
आये न सजना हमार...हो |.....आई रे बरखा ...||
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क्रमश --३, उर्दू साहित्य की रचनाएँ ---
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