कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित
डा श्याम गुप्त के व्यक्तित्व व रचनाधर्मिता को स्पष्ट करते हुए कुछ तथ्य व कथ्य ...उनकी पुस्तकों के आत्मकथ्य से...
डा श्याम गुप्त के अभिनन्दन ग्रन्थ 'अमृत कलश का लोकार्पण २२-०२-२०२० को हुआ |---तुरंत लौकडाउन के कारण कुछ विज्ञ लोगों तक नहीं पहुँच पा रही है अतः --यहाँ इसे क्रमिक पोस्टों में प्रस्तुत किया जाएगा | प्रस्तुत है -- --तृतीय पुष्प----डॉ. श्यामगुप्त का परिचय, जीवनवृत्त एवं व्यक्तित्व..... अनिल किशोर निडर
डॉ. श्यामगुप्त का परिचय, जीवनवृत्त एवं व्यक्तित्व..... अनिल किशोर निडर
=====================================
जब कोई घटना, तथ्य, कथ्य, स्थिति, विषय-वस्तु वभाव मानव मन को गहराई तक स्पर्श करते हैं एवं अंतर्मन को मंथित करते हैं तो भावुक मन, अधिकाँश सामान्य व्यक्ति की भाँति, उसे अपने काम से काम के भाव में यूंही
छोड़कर आगे नहीं बढ़ जाता | भावुक मन प्रतिक्रिया स्वरुप उसके समाधान की इच्छा मेंअन्य हृदयों से, जन सामान्य से समर्थन या समन्वय की इच्छा में अपने विचार प्रस्तुतकरना चाहता है | साहित्य, काव्य, लेखन, गायन, चित्रकला इसी इच्छा के प्रस्तुतीकरण हैं| मानव मन में जब भाव आत्मतत्व को मंथित करते हैं तो भावनाएं गेय रूप में निसृतहोती हैं और कविता बन जाती है और वह मानव मन ..कवि |
दिन प्रतिदिन के लौकिक व्यवहार व जीवन मार्ग पर चलते-चलते व्यक्ति विभिन्न विचारों, घटनाओं, मत-मतान्तरों, व्यंजनाओं, वर्जनाओं, प्रश्नों व सामाजिक सरोकारों से दो-चार होता है| जिज्ञासु व वैचारिक मन इन सभी को अपने अनुभव, अर्जित ज्ञान एवं कर्म से तोलता है| अपने अंतर के आलोक से अपना स्वयं का मत स्थापित करता है जो स्थापित मतों से समन्वित भी होसकता है एवं पृथक भी| जीवन व संसार में प्रत्येक व्यक्ति अपने अपने स्तर पर यही अनुभव करता है और गुनुगुनाता है, हाँ भावुक, संवेदनशील कवि ह्रदय इन्हें कागज़ पर उतारकर काव्य का रूप दे देता है| अतः यही विचार, व्यक्ति की क्षमता, ज्ञान, संवेदना, अनुभव एवं सामाजिक सरोकार की प्रतिबद्धता के अनुसार, माँ वाग्देवी की कृपा से लेखनी के माध्यम से कागज़ पर उतरते हैं व काव्य रचना होजाते हैं जो आलेख, कथा –कहानी आदि गद्य में अथवा कविता में व्यक्त होते हैं एवं वह
व्यक्ति कवि व लेखक बन जाता है|
जीवन व जगत को एक साथ जीने वाले, संवेदनशील, भावुक, कवि हृदय डा श्यामगुप्त ऐसे ही एक अनुभवी, प्रतिभावान व सक्षम, वरिष्ठ साहित्यकार हैं जो विज्ञान के छात्र रहे हैं एवं चिकित्सा विज्ञान व शल्यक्रिया-विशेषज्ञता उनका जीविकोपार्जन | डा श्यामगुप्त भारतीय रेलवे की सेवा में चिकित्सक के रूप में
देशभर में कार्यरत रहे अतः समाज के विभिन्न वर्गों, अंगों, धर्मों, व्यक्ति व परिवार व समाज की संरचना एवं अंतर्द्वंद्वों को आपने करीब से देखा, जाना व समझा है वे एक संवेदनशील, विचारशील, तार्किक के साथ साथ सांसारिक-आध्यात्मिक-धार्मिक व नैतिक समन्वय की अभिरूचि पूर्ण साहित्यकार हैं, उनकी रचनाएं व कृतित्व
स्वतःस्फूर्त एवं जीवन से भरपूर हैं| वे साहित्य के प्रत्येक अनुशासन-गद्य व पद्य की सभी विधाओं में तथा अंतर्जाल ( इंटरनेट) पर हिन्दी, ब्रजभाषा एवं अंग्रेज़ीभाषाओं में रचनारत हैं|
डाश्यामगुप्त लखनऊ के वरिष्ठ कवि व साहित्यकार हैं जो साहित्य में सतत सृजनशील हैं
एवं साहित्य जगत को आशा है कि वे लम्बे काल तक अपनी सार्थक रचनाओं व कृतियों से
माँ भारती का भंडार भरने में समर्थ सिद्ध होंगे |
जन्म, परिजन व परिवार -
चिकित्सा जगत व साहित्य जगत में जाना पहचाना नाम, चिकित्सक,-चिकित्सक व साहित्यकार डा श्यामगुप्त का पूरा नाम श्यामबाबू गुप्ता है जिससे वे मित्रों, साथियों व सहपाठियों में पुकारे जाते हैं चिकित्सा क्षेत्र में वे डा .एस.बी.गुप्ता के नाम से जाने-पहचाने जाते हैं
|
डा श्यामगुप्त का जन्म पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ग्राम मिढाकुर, जिला आगरा में १० नवंबर १९४४ ई को जमीदार वैश्य परिवार में हुआ | आपके पिता का नाम स्व जगन्नाथ प्रसाद गुप्त व माता स्व श्रीमती रामभेजी देवी हैं | जमीदारी समाप्त होने पर पिता जीविका हेतु सपरिवार आगरा नगर में आगये | मिडिल पास पिता प्राइवेट कंपनी में मुनीम (एकाउंटेंट) की सेवा करने लगे और वे अपनीकार्यकुशलता व ईमानदारी के लिए व्यापार जगत में प्रसिद्ध रहे | डा श्यामगुप्त आठ–बहन हैं | सभी बहनें आगरा में ही विवाहित हैं | रेलवे की कामर्शियल सेवा से सेवानिवृत्त बड़े भाई डा रामबाबू गुप्त आगरा में होम्योपेथ चिकित्सक हैं, जोधपुर स्थित छोटे भाई इं हरेन्द्र गुप्ता उत्तर रेलवे में सिग्नल व टेलीकोम इंजीनियर के पद से सेवानिवृत्त हैं तथा सबसे छोटे भाई अशोक गुप्ता व उनकी पत्नी कुसुम गुप्ता आगरा में बैंक-प्रवन्धक के पद से सेवा निवृत्त हैं|
डा श्यामगुप्त का जन्म पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ग्राम मिढाकुर, जिला आगरा में १० नवंबर १९४४ ई को जमीदार वैश्य परिवार में हुआ | आपके पिता का नाम स्व जगन्नाथ प्रसाद गुप्त व माता स्व श्रीमती रामभेजी देवी हैं | जमीदारी समाप्त होने पर पिता जीविका हेतु सपरिवार आगरा नगर में आगये | मिडिल पास पिता प्राइवेट कंपनी में मुनीम (एकाउंटेंट) की सेवा करने लगे और वे अपनीकार्यकुशलता व ईमानदारी के लिए व्यापार जगत में प्रसिद्ध रहे | डा श्यामगुप्त आठ–बहन हैं | सभी बहनें आगरा में ही विवाहित हैं | रेलवे की कामर्शियल सेवा से सेवानिवृत्त बड़े भाई डा रामबाबू गुप्त आगरा में होम्योपेथ चिकित्सक हैं, जोधपुर स्थित छोटे भाई इं हरेन्द्र गुप्ता उत्तर रेलवे में सिग्नल व टेलीकोम इंजीनियर के पद से सेवानिवृत्त हैं तथा सबसे छोटे भाई अशोक गुप्ता व उनकी पत्नी कुसुम गुप्ता आगरा में बैंक-प्रवन्धक के पद से सेवा निवृत्त हैं|
डा श्यामगुप्त की पत्नी श्रीमती सुषमा गुप्ता गृहणी हैं जो हिन्दी में एमऐ हैं एवं स्वयं भी एक
कवियत्री व गायिका हैं| आपके एक पुत्र व एक पुत्री हैं| पुत्र इ.निर्विकार इलेक्ट्रिक-इलेक्ट्रोनिक्स में बीई एवं सिस्टम्स (कम्प्युटर) में एम.बी.ए. हैं| वे बेंगलोर में फिलिप्स कंपनी में वरिष्ठ प्रवन्धक के पद पर कार्यरत हैं एवं पुत्रवधू श्रीमती रीना गुप्ता एमबीए(फाइनेंस) बेंगलोर स्थित क्रीडेन्स फेमिली आफिस’ कंपनी में फाइनेंशियल-प्रवन्धक हैं| पुत्री दीपिका गुप्ता मानव संसाधन प्रवंधन में स्नातकोत्तर व दामाद श्री शैलेश अग्रहरि बी.टैक.,एमबीए.. फिलिप्स पूना में महाप्रवन्धक पद परकार्यरत हैं |
चित्र-२ में-- बाएं से दायें –पुत्र-पुत्रवधू रीना गुप्ता व निर्विकार गुप्ता तथा पौत्र आराध्य, डा. श्यामगुप्त व पत्नी सुषमा गुप्ता, पुत्री दीपिका गुप्ता व जामातृ श्री शैलेश अग्रहरि व दौहित्र दक्ष.....
पारिवारिक, सामाजिक व सामयिक वातावरण की, मानव के जीवन की धारा व दिशा को स्थापित करने में
अहं भूमिका रहती है | धर्म, अध्यात्म के वातावरण -- रामायण के सस्वर पाठ से दिनचर्या प्रारम्भ करने वाली व चाकी-चूल्हे से लेकर देवी-देवता, मंदिर-मूर्ति, नदी-तुलसी की पूजा अर्चना करने वाली माँ व स्वतन्त्रता संग्राम के काल में अप्रतिम राष्ट्रवादी, अपने गाँव में झंडा-गीत व देशभक्ति के गीतों के गायकों की टोली के नायक,
देशभक्ति व सर्व-धर्म, सम-भाव भावना प्रधान पिता के सान्निध्य में वाल्यावस्था में ही कविता-प्रेम प्रस्फुटित हो चुका था | बचपन से ही भाई-बहनों, सहपाठियों, मित्रों, साथियों में वेआशु कवि के रूप में हर बात पर कविता बना देने वाले रूप में जाने जाते थे|शिक्षाकाल से ही आगरा नगर की पत्र-पत्रिकाओं में कवितायें व आलेख प्रकाशित होते रहे | आगरा से प्रकाशित " युवांतर" साप्ताहिक के वेवैज्ञानिक सम्पादक-लेखक रहे एवं बाद में लखनऊ नगर से प्रकाशित " निरोगी संसार " मासिक के नियमितलेखक व सम्पादकीय सलाहकार | सेवायोजन के काल में भी उनके आलेख एवं कवितायें तथा हिन्दीमें चिकित्सा आलेख रेलवे की पत्रिकाओं, भारतीय रेलवे महिला कल्याण संगठन कीपत्रिका तथा रेल हिन्दी विभाग की पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे| सम्प्रति वे
लखनऊ नगर की विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं के सदस्य हैं |
शिक्षा दीक्षा --
डा श्यामगुप्त की समस्त शिक्षा आगरा नगर में ही हुई| सेंट जांस स्कूल आगरा, राजकीय इंटर कालिज आगरा व सेंट जांस डिग्री कालिज आगरा सेअकादमिक शिक्षा के उपरांत उन्होंने सरोजिनी नायडू चिकित्सा महाविद्यालय आगरा (आगरा विश्वविद्यालय ) से चिकित्सा शास्त्र में स्नातक की उपाधि ‘एम् बी बी एस’ एवं शल्य-क्रिया विशेषज्ञता में भोजन नली के केंसर पर शोध-प्रवंध (थीसिस) के साथ स्नातकोत्तर ‘मास्टर आफ सर्जरी’ की उपाधि प्राप्त की | इस दौरान देश-विदेश की चिकित्सा पत्रिकाओं व शोध पत्रिकाओं में उनके चिकित्सा-आलेख व शोध-आलेख छपते रहे |
चित्र-३. में - एस.एन.मेडीकल कालिज, आगरा के गोल्डन जुबिली अल्यूमिनी सम्मिलन में बोलते हुए डा.एस.बी.गुप्त एवं पत्नी सुषमा गुप्ता अपने छात्र जीवन के चित्र के प्रोजेक्शन के साथ ......
चिकित्सा महाविद्यालय में दो वर्ष तक रेज़ीडेंट-सर्जन के पद पर कार्य के उपरान्त आप भारतीय रेलवे केचिकित्सा विभाग में प्रथमश्रेणी सेवा में चयनित होकर देश भर में विभिन्न पदों वनगरों में कार्यरत रहे एवं उत्तर रेलवे मंडल चिकित्सालय, लखनऊ से २००४ ई में वरिष्ठ चिकित्सा अधीक्षक के पद सेसेवानिवृत्त हुए | सेवानिवृत्तिके उपरांत आप साहित्य सेवा में संलग्न हैं| सम्प्रति उनका स्थायी निवास लखनऊ है |
चित्र में --- उत्तर रेलवे लखनऊ राजभाषा गोष्ठी में वक्तव्य देते हुए डा श्यामगुप्त, मंच पर पद्मश्री श्री के.पी. सक्सेना जी, डा सुधा राव व अन्य....
अन्य अभिरुचियाँ – चिकित्सा व साहित्य के अतिरिक्त डा श्यामगुप्त विविध विषयी अभिरुचि वाले
व्यक्ति हैं| सभी इंडोर व आउटडोर खेलों के अतिरिक्त, यात्रा, पर्यटन,अध्यात्म, वैदिक-पौराणिक-शास्त्रीय, सांस्कृतिक, धार्मिक साहित्य व पुस्तकों कापठन-पाठन में उनकी रुचि हैं| बचपन से ही चित्रकारी व फोटोग्राफी उनकीप्रिय रूचि रही है | कई बार उन्होंने अपनी कलाकृतियों को प्रदर्शित भी किया है| प्रायःअपनी सभी पुस्तक-कृतियों के मुख-पृष्ठ वे स्वयं ही डिजायन करते हैं |
डा श्याम गुप्त के प्रेरणास्रोत- काव्य, पठन-पाठन, सांस्कृतिक-अध्यात्म-तार्किकता, संकल्प, नैतिकता, धर्म,
देश-भक्ति, राष्ट्रवाद एवं साहित्यिक अभिरुचि के मूल प्रेरणास्रोत उनके पिताश्री जगन्नाथ प्रसाद गुप्ता है | | तत्पश्चात कविता लिखने की प्रेरणा उनकेजूनियर कक्षाओं के सहपाठी मित्र रामकुमार अग्रवाल से मिली जो स्वयं कवितालिखते थे एवं उनके पिता प्रेस के मालिक थे | बड़े भाई डा रामबाबू गुप्ता कीप्रेरणा के उपरांत वे शिक्षा व विज्ञान के क्षेत्र में आगे बढ़े एवं श्रेष्ठ छात्रबने | चिकित्सा महाविद्यालय के काल में कविता लेखन कम होगया जो विवाहोपरांत पत्नीसुषमा गुप्ता की संगीत व गायन कला के ज्ञान व प्रेरणा से पुनः प्रारम्भ हुआ | रचनाओं
को प्रकाशित कराने की प्रेरणा उन्हें अपनी पुत्री दीपिका गुप्ता से मिली औरइस प्रकार १९५७ई से लिखकर रखी हुई कविताओं का प्रकाशन प्रथमबार सं २००४ ई. में प्रथमपुस्तक ‘काव्यदूत’ के रूप में हुआ |
अगीत के संस्थापक डा रंगनाथमिश्र 'सत्य' वअगीतकार श्रीजगतनारायण पांडे केसंपर्क मेंआने पर
डा गुप्त, कविताकी अगीतविधा, सन्घीयसमीक्षा पद्धतिसे समीक्षाव सन्तुलित कहानी सेपरिचित हुए
और सक्षम निबंधकार, लेखक, कहानीकार तथा छंदीय व अतुकांत कविता व गीतकार केसाथ-साथ एक
सशक्त अगीतकार कवि, सन्घीय समीक्षा पद्धति के समीक्षक व सन्तुलित कहानी के कहानीकार के
रूप मेंभी प्रतिष्ठितहुए | वेलखनऊ कीविभिन्न साहित्यिकसंस्थाओं सेसम्वद्ध हैं एवंअगीत साहित्य परिषद, प्रतिष्ठा वचेतना परिषदके आजीवनसदस्य हैं, एवं गुरुवासरीय साहित्यिक काव्य-गोष्ठी के संस्थापक/ संचालक हैं जो उनकेआवास पर प्रत्येक माह के प्रथम गुरूवार को आयोजित होती है |
सम्मान, पुरस्कार व अलंकरण आदि--- -
१.राजभाषाविभाग,गृह मंत्रालय(उ प्र)द्वाराराजभाषा सम्मान (काव्य संग्रह काव्यदूत व काव्य-निर्झरिणी हेतु).
२.अभियानजबलपुर संस्था (म.प्र.) द्वारा हिन्दी भूषण सम्मान( महाकाव्य‘सृष्टि’ हेतु )
३.विन्ध्यवासिनीहिन्दी विकास संस्थान, नई दिल्ली द्वारा बावा दीप सिन्घ स्मृति सम्मान,
४.अ.भा.अगीतपरिषदद्वारा-श्री कमलापति मिश्र सम्मान व अ.भा.साहित्यकारदिवस पर प.सोहनलाल द्विवेदी सम्मान|
५. अ.भा.अगीतपरिषद द्वारा अगीत-विधा महाकाव्य सम्मान( अगीत-विधा महाकाव्य सृष्टि हेतु)
६.जाग्रतिप्रकाशन, मुम्बई द्वारा-साहित्य-भूषण एवं पूर्व पश्चिम गौरव सम्मान,
७.इन्द्रधनुषसन्स्था बिज़नौर द्वारा..काव्य-मर्मज्ञ सम्मान.
८.छ्त्तीसगढशिक्षक साहित्यकार मंच, दुर्ग द्वारा-हिरदे कविरत्न सम्मान,
९.युवाकवियों की सन्स्था; ’सृजन’’ लखनऊ द्वारा महाकवि सम्मान एवं सृजन-साधना वरिष्ठ कवि सम्मान.
१०.शिक्षासाहित्य व कला विकास समिति,श्रावस्ती द्वारा श्री ब्रज बहादुर पांडे स्मृतिसम्मान
११.अ.भा.साहित्यसंगम,उदयपुर द्वारा राष्ट्रीय-प्रतिभा-सम्मान व शूर्पणखा काव्य-उपन्यास हेतु 'काव्य-केसरी' उपाधि |
१२. जगत सुन्दरम कल्याण ट्रस्ट द्वारा महाकवि जगत नारायण पांडे स्मृति सम्मान.
१२. जगत सुन्दरम कल्याण ट्रस्ट द्वारा महाकवि जगत नारायण पांडे स्मृति सम्मान.
१३.विश्व हिन्दी साहित्य सेवा संस्थान,इलाहाबाद द्वारा ‘विहिसा-अलंकरण’-२०१२....आदि..
१४.हिन्दी साहित्य मंच ( ई पत्रिका ) द्वारा काव्य सम्मान,
१५.बिसारिया शिक्षा एवं सेवा समिति, लखनऊ द्वारा ‘अमृत-पुत्र पदक
१६.कर्नाटक हिन्दी प्रचार समिति, बेंगालूरू द्वारा सारस्वत सम्मान(इन्द्रधनुष–उपन्यास हेतु)
१७,उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान लखनऊ व कर्नाटक हिन्दी प्रचार समिति द्वाराराष्ट्रीय गोष्ठी वक्ता पुरस्कार
१८.युवारचनाकार मंच द्वारा डा अनंत माधव चिपलूणकर स्मृति सम्मान -२०१५
१९साहित्यमंडल श्रीनाथ द्वारा –द्वारा हिन्दी साहित्य विभूषण की उपाधि२०१५
२०.अंतर्जाल पर साहित्य रचना हेतु डा.रसाल स्मृति शोध संस्थान द्वारारवीन्द्र शुक्ल स्मृति पुरस्कार
२१.अखिलभारतीय मतदाता परिषद् द्वारा समाज भूषण सम्मान २०१७.
२२. नवसृजन संस्था लखनऊ द्वारा साहित्याचार्य की उपाधि २०१७ |
शोध----लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा ‘डा श्यामगुप्त के व्यक्तित्व व कृतित्व’ पर शोध |
श्रेष्ठ हिन्दी ब्लोग -डा श्यामगुप्त का ब्लॉग— श्यामस्मृति--मेरे विचारों की दुनिया –२०१४-१५ व २०१६ के बेस्ट हिन्दी ब्लोग्स में सम्मिलित किया गया |
श्यामगुप्त के साहित्यकर्म व सृजन काउद्देश्य....साहित्य के सभी अंगों के उपयोग से नारी विमर्श व उत्थान, वैदिक–पौराणिक साहित्य व उनकी जीवनोपयोगी अस्मिताओं, उनमें अवस्थित वैज्ञानिक तत्वों को जन भाषा मेंजन-जन के सम्मुख रखकर मानव-मात्र में चारित्रिक उत्थान, सदाचरण, प्रेम, राष्ट्रवाद की
उदात्त भावनाओं की पुनर्स्थापना; साहित्य व भाषा में नवीनता की ललक के साथ पुरातन की महक को संजो कर रखना...असम्पृक्त व अनावश्यक का परित्याग व सामाजिक, सामयिक आवश्यक नवीन का सृजन साथ-साथ
... जिनकेप्रेरक राष्ट्र्वादीव देशभक्ति से ओत-प्रोत उनके पूज्य पिताहैं | यही उनकी साहित्य, समाज व मानवता के प्रति प्रतिबद्धता भी है |
डा श्याम गुप्त के व्यक्तित्व व रचनाधर्मिता को स्पष्ट करते हुए कुछ तथ्य व कथ्य ...उनकी पुस्तकों के आत्मकथ्य से...
१.सृष्टि के कण-कण में जो स्पंदन क्रंदन नर्तन, जीवन व निलयन है सभीकुछ प्रेम, प्रेम की अभिव्यक्ति एवं प्रेम की परिणति ही है | संयोग प्रेम है वियोग प्रेम है, स्थिति प्रेम है| जीवन की अभिव्यक्ति, कृति व सांसारिकता का भवचक्र प्रेम से ही है- -----प्रेम काव्य महाकाव्य के प्रेम-कथ्य से.
२. ईश्वर है या नहीं, यह एक गंभीर विवेचना का विषय है जो युगों से चलता आया है व चलता रहेगा| वस्तुतः यह आस्था का विषय है- ‘मानो तो कंकर हैं शंकर हैं अन्यथा’... यद्यपि वैदिक साहित्य -ईश्वर के होने के अत्यंत प्रामाणिक, सारगर्भित व तर्कपूर्ण प्रमाण प्रस्तुत करता हैपरन्तु वस्तुतः यह है आस्था काविषय है | -----.सृष्टिमहाकाव्य ( आत्मकथ्य से
३. सृजनकी ईशत सत्ता, परम तत्व की कार्यकारी शक्तिजहां असीम ब्रह्म में प्रकृति, माया, आदि-शक्ति है वहीं ससीम विश्व में वह नारी रूपा है | अतः परमतत्व को समझने के लिएउससे बढकर श्रेष्ठतर तत्व और क्या हो सकता है |-काव्य-दूत, अपनी बात से..
४.काव्य सौन्दर्य प्रधान हो या सत्य प्रधान, इस पर पूर्व वपश्चिम के विद्वानोंमें मतभेद हो सकता है आचार्यों के अपने अपने तर्क व मत हैं| सृष्टि के प्रत्येक वस्तु-भाव की भाँति कविता भी सत्यं शिवं सुन्दरं होनी चाहिए | साहित्य का कार्य सिर्फ मनोरंजन व जनरंजन न होकर समाज को एक उचित दिशा देना भीहोता है, और
सत्य के बिना कोई दिशा, दिशा नहीं हो सकती| केवलकलापक्ष को सजाने हेतु एतिहासिक, भौगोलिक व तथ्यात्मक सत्य को अनदेखा नहीं करना चाहिए ---काव्य निर्झरिणी से
५.साहित्य व काव्य किसी विशेष समाज, शाखा व समूह या विषय के लिए न होकर समग्रसमाज के लिए, सबके
लिए होता है| अतः उसे किसी भाषा, गुट या शाखा विशेष कीसंकीर्णता की रचनाधर्मिता न होकर भाषा व
काव्य की समस्त शक्तियों, भावों,तथ्यों, शब्द-भावों व सम्भावनाओं का उपयोग करना होता है | प्रवाह व लय काव्य की विशेषताएं हैं जो काव्य-विषय व भावसम्प्रेषण क्षमता की आवश्यकतानुसार छंदोबद्ध-काव्य में भी हो सकती है एवं मुक्तछंद काव्य मेंभी| अतः तुकांत-अतुकांत, गीत-अगीत कोई विवाद का विषय नहीं है-----शूर्पणखा से ..
६.समाज में जब कभी भी विश्रृंखलता उत्पन्न होती है तो उसका मूल कारण मानव मन में नैतिक बल की कमी होता है भौतिकता के अतिप्रवाह में शौर्य, नैतिकता, सामाजिकता, धर्म, अध्यात्म, व्यवहारगत शुचिता, धैर्य, संतोष, समता, अनुशासन आदि उदात्त भावों की कमी से असंयमता पनपती है| अपने इतिहास,शास्त्र, पुराण, गाथाएं, भाषा व ज्ञान को जाने बिना भागम-भाग में नवीन अनजाने मार्ग पर चल देना अंधकूप की ओर चलना ही है | आज की विश्रृंखलता का यही कारण है -- शूर्पणखा से.....
७.मेरे विचार से समस्या व तार्किकताप्रधान विषयों को मुक्त-छंदरचनाओं में सुगमता से कहा जा सकता है जो
जन सामान्य के लिए सुबोध होती हैं--काव्य मुक्तामृत से .....
८.कविता या काव्य या साहित्य किशी विशेष कालखंड, भाषा, देशया संस्कृति से बंधित नहीं होते| मानव जब मात्र मानव था, जहां जाति, देश, वर्ण,काल, भाषा संस्कृति से कोई सम्बन्ध नहीं था तब भी प्रकृति के रोमांच, भय,आशा-निराशा, सुख-दुःख आदि का अकेले में अथवा अन्य से सम्प्रेषण शब्दहीन इंगितों,अर्थहीन उच्चारणों में करता रहा होगा| ----कुछ शायरी की बात होजाए से ..|
९. यह कहना समीचीन होगा कि कविता के उच्चतम मानसिक धरातल पर पहुंचकर भाषा व शैली में पूर्ण भाषिक सरलता उत्पन्न हो जाती है तथा उद्देश्य-समष्टि हित, जहां न अलंकरण, न लक्षणा-व्यंजना, श्लेष व तनाव भरी शब्द-सृष्टि याअर्थाभाव और न कलात्मक साहित्यिक अभिप्राय रह जाता है | काव्य की भाषा नितान्त
सरल, भावप्रवण व अर्थ रूप होजाती है, जो सीधे मर्म को स्पर्श करे, प्रभावित करे | —अगीतसाहित्य दर्पण से..
१०. आजकल साहित्यकार कहने लगे हैं कि अब नारी विमर्श नहीं पुरुष विमर्श की बात होनी चाहिए | परन्तु सत्य तो यह है कि नारी-पुरुष कब पृथक थेऔर कभी भी पृथक-पृथक सोचे, समझे व लिखे नहीं जा सकते | जहां पुरुष है वहां नारीअवश्य है | एक दूसरे से अन्यथा किसी का कोई अस्तित्व नहीं है | अतः बात वस्तुतः नारी-पुरुष
विमर्श के होनी चाहिए | -----इन्द्रधनुष उपन्यास से...|
११..आप की रचनाओं की भी एक विशेषता है कि जब आप पढ़ना समाप्त कर चुके होते हैं तब आरम्भ होता है एक अंतरप्रवाह और हम सोचते ही चले जाते हैं देर तक दूर तक| कोइ भी रचना, कहानी,उपन्यास,कविता आदि मन में स्थायी पैठ बनातीं है | --- श्रीकांत त्रिपाठी
११..आप की रचनाओं की भी एक विशेषता है कि जब आप पढ़ना समाप्त कर चुके होते हैं तब आरम्भ होता है एक अंतरप्रवाह और हम सोचते ही चले जाते हैं देर तक दूर तक| कोइ भी रचना, कहानी,उपन्यास,कविता आदि मन में स्थायी पैठ बनातीं है | --- श्रीकांत त्रिपाठी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें