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गुरुवार, 21 मई 2020

डा श्याम गुप्त के अभिनन्दन ग्रन्थ 'अमृत कलश---पंचम पुष्प ---आलेख-५-- साठोत्तरी काव्य युग में अगीत के स्तम्भ –अगीत त्रयी एवं डा श्याम गुप्त –-राम प्रकाश शुक्ल प्रकाश

                                      कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित


-डा श्याम गुप्त के अभिनन्दन ग्रन्थ 'अमृत कलश का लोकार्पण २२-०२-२०२० को हुआ |---तुरंत लौकडाउन के कारण कुछ विज्ञ लोगों तक नहीं पहुँच पा रही है अतः --यहाँ इसे क्रमिक पोस्टों में प्रस्तुत किया जाएगा | प्रस्तुत है - -पंचम पुष्प --आलेख----आलेख-५--



साठोत्तरी काव्य युग में अगीत के स्तम्भ –अगीत त्रयी एवं डा श्याम गुप्त –-राम प्रकाश शुक्ल प्रकाश

            विभिन्न काव्य युगों में साहित्य चेतना जगाने हेतु हिन्दी को समृद्ध बनाने के लिये विभिन्न विधाओं, कवियों व साहित्यकारों ने बढ़ चढ़ कर प्रयास किया है | इसी क्रम में काव्य के साठोत्तरी युग में एक नवीन काव्यधारा अगीत- कविता नाम की एक अविरल निर्झरिणी बह निकली जो अनेक झंझावातों व और बवंडरों के बीच दोलन करती हुई साठोत्तरी कविता में नवकिरण की भाँति प्रस्फुटित हुई | सामाजिक राजनैतिक सांस्कृतिक परिस्थितयों के परिवेश में अगीत काव्य ने साहित्य में एक दिशाबोध सुनिश्चित किया | काव्य की यह सरिता स्थिति-परिस्थिति को निहारते  हुए अपने अस्तित्व को प्रबल बनाने के उद्देश्य से अग्रसर होती गयी | अगणित रचनाकारों के प्रश्रय में यह विधा परवान चढ़ती रही | इस विधा को विशिष्ट बनाने में  तीन प्रमुख रचनाकारों को ‘अगीत त्रयी’  के नाम से पुकारा गया | इस धारा का साहित्य में अगीतवाद के प्रवर्तक एवं प्रथम स्तम्भ  साहित्यभूषण डा रंगनाथ मिश्र सत्य द्वारा प्रतिपादन किया गया | उन्होंने संतुलित कहानी एवं संघीय समीक्षा पद्धति का भी सूत्रपात किया एवं जाने कितने अगीत के कवियों को अगीत  काव्य कृतियों की रचना हेतु प्रेरित किया | अतः वे हिन्दी साहित्य में अगीत साहित्य के जनक व प्रवर्तक स्तंभ के रूप में जाने जाते हैं | अगीत कविता के द्वितीय स्तम्भ के रूप में श्री जगत नारायण पांडे को जाना जाता है जिन्होंने अगीत विधा  के  प्रथम महाकाव्य व खंड काव्य की रचना की और इस विधा को आगे बढाया |
            यहाँ जिस रचनाकार का सन्दर्भ है उन  हिन्दी, अंग्रेज़ी व ब्रजभाषा में रचनारत, साहित्य के प्रत्येक क्षेत्र गद्य पद्य कविता, छंद, कहानी, कथा , उपन्यास, लघुकथा, समीक्षा आदि सभी विधाओं में लेखनी चलाने वाले, लब्ध प्रतिष्ठित कवि व साहित्यकार; महाकाव्य , खंडकाव्य, उपन्यास, लक्षण ग्रन्थ आदि लगभग पंद्रह ग्रन्थों के रचयिता महाकवि डा श्याम गुप्त को अगीत विधा के एक अन्य मुख्य स्तम्भ के रूप में कौन नहीं जानता | डा श्याम गुप्त ने हिन्दी व अगीत कविता के क्षेत्र में बहुत बड़ा काम किया है | उन्होंने वैदिक विज्ञान के आधार पर सृष्टि महाकाव्य की रचना की जो ग्यारह सर्गों में ईश्वर व जगत की संरचना जैसे वैज्ञानिक, दार्शनिक व वैदिक विषय पर अगीत में प्रथम महाकाव्य है एवं ईश्वर को नायक रूप में प्रस्तुत  करने वाला हिन्दी साहित्य में प्रथम महाकाव्य | ईश्वर आस्था, विश्वास मानव के लिए सर्वोपयोगी एवं सर्वकार्य नियामक सत्ता है ऐसा कवि का मानना है , दृष्टव्य है - ---  
  पर ईश्वर है जगत नियंता / कोई है अपने ऊपर भी |
 रहे तिरोहित अहं भाव सब / सत्व गुणों से युत हो मानव |

        खलनायिका पर आधारित खंडकाव्य शूर्पणखा काव्य उपन्यास  एवं अगीत कविता के विविध प्रकार के नए नए छंदों –लयबद्ध अगीत , षटपदी अगीत, त्रिपदा अगीत, नव अगीत व त्रिपदा ग़ज़ल आदि का  आपने  सृजन किया  है |  लगभग 300 अगीतों की रचना करके  एवं अगीत विधा का सर्वप्रथम छंद विधान, शास्त्रीय लक्षण ग्रन्थ  ‘अगीत साहित्य दर्पण ‘ की रचना करके वे साहित्याचार्य  के रूप में प्रतिष्ठित हैं | अगीत विधा के सशक्त हस्ताक्षर डा श्याम गुप्त संघीय समीक्षा पद्धति के समीक्षक एवं संतुलित कहानी के कथाकार के रूप में भी सुप्रसिद्ध हैं | इस प्रकार वे अगीत विधा के मुख्य उन्नायक व स्थायित्व प्रदाता  के रूप में प्रतिष्ठित हैं |  अगीत त्रयी से  आदर्श व प्रेरणा लेकर तमाम अगीत काव्य –महाकाव्य रचे गए | कुमार तरल द्वारा बुद्धकथा महाकाव्य, राम प्रकाश शुक्ल प्रकाश द्वारा मत्स्यावतार महाकाव्य एवं बिनोद कुमार सिन्हा द्वारा श्रीमद्भागवद्गीता अगीत में कृति की रचना की गयी |
          साठोत्तरी युग की कविता, अगीत कविता में अगीत विधा  के तीन मुख्य स्तंभों  पर ‘अगीत त्रयी ‘की रचना करने वाले डा श्याम गुप्त काव्य जगत में अगीत विधा की प्रतिष्ठापना, स्थायित्व व प्रगति का मूल हैं | उन्हें अगीत विधा का मुख्य स्तम्भ कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी | उनके अभिनंदन ग्रन्थ प्रकाशन पर शुभकामनाएं प्रेषित हैं |


 २०.६.१९                                                                           राम प्रकाश शुक्ल ‘प्रकाश’
 ३४६/२७२ ,पंचायती मंदिर
 मेहंदी गंज , लखनऊ                                        
  

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