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मंगलवार, 19 मई 2020

डा श्याम गुप्त के अभिनन्दन ग्रन्थ 'अमृत कलश --पंचम पुष्प ----आलेख-४--साहित्य में नवीनता व सत्य के आग्रही –डा. श्यामगुप्त --सुषमा गुप्ता ...

                                          कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित


-डा श्याम गुप्त के अभिनन्दन ग्रन्थ 'अमृत कलश का लोकार्पण २२-०२-२०२० को हुआ |---तुरंत लौकडाउन के कारण कुछ विज्ञ लोगों तक नहीं पहुँच पा रही है अतः --यहाँ इसे क्रमिक पोस्टों में प्रस्तुत किया जाएगा | प्रस्तुत है - -पंचम पुष्प --आलेख----आलेख-४--साहित्य में नवीनता  सत्य के आग्रही डा. श्यामगुप्त --सुषमा गुप्ता   

  
               


साहित्य में नवीनता सत्य के आग्रही डा. श्यामगुप्त --सुषमा गुप्ता        
       बहुमुखी प्रतिभा के धनी,पेशे से चिकित्सक डा. श्यामगुप्त त्रिभंगी मुद्रा भाव में जहां अपने मित्रों,कालिज मैडीकल कालिज के सहपाठियों मेंश्यामबाबू के नाम से जाने जाते हैं तथा चिकित्सा के कार्यक्षेत्र में वेडा. एस बी गुप्ताके नाम से प्रसिद्ध हैं वहीं साहित्य के क्षेत्र में वेडा.श्याम गुप्त के नाम से सुपरिचित हैं | साहित्यिक अभिरुचि युक्त कोमल उदारमना,विनम्र,सीधे-साधे डा. श्यामगुप्त स्पष्ट वक्ता, कठोर समीक्षक आलोचक भी जाने जाते हैं,वहीं असज्जनों के लिए कठोर कठोर नियम पालक भी हैं |

    हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में वे गद्य,पद्य की सभी विधाओंतुकांत,अतुकांत अगीत, कविता, ग़ज़ल, गीत,छंद,कहानी,आलेख,समीक्षा सभी में रचनारत हैं एवं नए-नए प्रयोग करते रहते हैं | कई नवीन छंदों के साथ-साथ ही हिन्दी काव्य की विशिष्ट विधा,अगीत-काव्य के कई नवीन छंद आपने सृजित किये हैं|आपके द्वारा लिखित अगीत-विधा का प्रथम शास्त्रीय छंद-विधान अगीत साहित्य दर्पण एक अभिनव ग्रन्थ है |
           
          काव्य में सदैव नवीनता सत्य के आग्रही डा. श्यामगुप्त द्वारा सृजित कृतियों में सर्वदा एक अपनी विशिष्टता होती है | कृति-विषय एक विशिष्ट तारतम्यता लिए हुए होते हैं एवं प्रत्येक बार एक नवीनता लिए हुए | उनके कृति-विषय मूलतः लौकिक तथ्य से होते हुए आध्यात्मिक स्तर पर उठते हुए पारलौकिकता तक पहुँचते हैं|                
           वे मूलतः प्रेम के कवि हैं,साहित्यकार हैं| प्रेम उनके लिए संसार है,जीवन है,श्वांस हैं, उच्छवास है,सामाजिकता है,ईश्वर है| उनका प्रेम-रथ लौकिकता से होते हुए दिव्यता, दर्शन अध्यात्म तक प्रयाण करता है, यथा प्रथम कृति काव्यदूतबालमन की स्मृतियों से कैशोर्य, युवावस्था, गृहस्थ, प्रौढावस्था की जीवन भंगिमाओं की कविताओं-गीतों से होते हुए दर्शन, अध्यात्म, पारलौकिकता से मुक्ति, मोक्ष तक की ऊंचाई तक जाते है | काव्य की विभिन्न विधाओं में रचित महाकाव्य प्रेमकाव्य में प्रेम के सभी रूपों का सांगोपांग वर्णन करते हुए उनका काव्य, लोक से होकर जीवन, दर्शन, अध्यात्म से मोक्षदा एकादश तक प्रयाण करता हुआ वेदान्त के अनुसार प्रेम के मूलमा विदिष्वावहैतक जाता है | सृष्टि-महाकाव्य तो दर्शन, आधुनिक विज्ञान, वैदिक ज्ञान-विज्ञान, जीवन मूल्य आदर्शों की समन्वित गाथा ही है | शूर्पणखा काव्य-उपन्यास में खलनायिका को चारित्रिक बुराइयों से नारी चरित्र की मानसिक भावभूमि की ऊंचाइयों तक पहुंचाया गया है| उपन्यास इन्द्रधनुष में नायक-नायिका प्रेम आदर्श एवं स्त्री-पुरुष मैत्री के आध्यात्मिक दार्शनिकता एवं निष्कामता के उच्च स्तर तक पहुँचते हैं| हम दोनों द्वारा सम्मिलित रूप से रचित  प्रथम कृति, ब्रजभाषा काव्य, ब्रजबांसुरी के १८ अध्याय, गीता के १८ अध्याय ईशोपनिषद के १८ मन्त्रों से तादाम्य करते हैं| कुछ शायरी की बात होजाये में भी दिल की बात से लेकर शब्द-ब्रह्म होते हुए ग़ज़ल शायरी के भाववो कौन हैनाद-अनाहततक जाते हैं|

         प्रेम श्रृंगार गीतों का संग्रह तुम तुम और तुम में प्रेम श्रृंगार के संयोग, वियोग भावों के साथ-साथ प्रेम, प्रेमी प्रेमिका की विभिन्न मनोदशाएँ, स्मृतियां, भावों के संगम, अंतर्मन की संवेदनाओं का गीतों द्वारा सांगोपांग वर्णन किया गया है | मानव वय की विविध अवस्थाओं के विभिन्न सोपानों बालमन, कैशोर्य, युवा प्रौढ़ मन के, जीवन की  विभिन्न परिस्थितियों, स्थितियों, घटनाओं, गार्हस्थ्य भावनाओं आदि के सभी रूमानी, रूहानी भाव, तात्विक प्रेमभाव, मनोभावों की सरस, सरल अभिव्यक्ति है| वस्तुतः यह जीवन का काव्य है जिसमें प्रेम श्रृंगार गीत होते हुए भी सदैव की भाँति लौकिकता के साथ अध्यात्म, दर्शन जीवन तत्व-दर्शन की गहनता भी सर्वत्र बिखरी हुई है| ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद में वे वैदिक साहित्य के कठिन सन्दर्भों को हिन्दी के सरल भाषा में प्रस्तुत करते हैं| पीर ज़माने की ज़ल संग्रह में वे ज़माने की पीर का अनुभव दर्शन प्रस्तुत करते हुए प्रतीत होते हैं | ईबुक काव्य काँकरियां में  गीत अगीत विधाओं की काव्य क्षणिकाओं से हास्य व्यंग्य उत्पन्न करते हैं| अगीत त्रयी में अगीत के तीन स्तंभों को प्रस्तुत किया गया है |

         नवीनता की बात करें तो सृष्टि-महाकाव्य में दुष्टजनों एवं तमाम अमूर्त भावों, अपरामाया, चिदाकाश, त्रिदेव, शास्त्र आदि की वन्दना करते हुए दिखाई देते हैं| प्रेमकाव्य में अध्यायों को सुमनांजलि एवं ब्रजबांसुरी में भाव-अरपन एवं उप-विषयों को सुमन आदि नए नाम से संबोधित करते हैं| शूर्पणखा खंडकाव्य को काव्य-उपन्यास का नवीन नाम दिया गया है | काव्यजगत में बहुचर्चित, नकारात्मक सकारात्मक दोनों रूपों में ही बहु-आलोचित गीत-कविता को स्थिरता प्रदान हेतु आपने अगीत महाकाव्य, खंडकाव्य सृजन के साथ साथ अगीत साहित्य दर्पण नाम से अगीत छंद-विधान का शास्त्रीय ग्रन्थ ही लिख डाला जो हिन्दी कविता में एक मील का पत्थर है | एक बात और है कि चिकित्सा महाविद्यालय के समय से ही १९६९ से वे अपने हस्ताक्षर हिन्दी में कर रहे हैं  एवं  चिकित्सा  विद्यालय एवं भारतीय रेल सेवा में भी यथासंभव  हिन्दी में कार्य करने हेतु  प्रयत्न रत रहते थे |      
        एक विशेष बात कम लोग ही जानते हैं कि डा श्याम गुप्त चिकित्सा विषयों पर अंग्रेज़ी में आलेखों के अलावा अंग्रेज़ी ब्रजभाषा में साहित्यिक आलेख कविता भी लिखते हैं | चित्रकारी फोटोग्राफी का भी उन्हें शौक है | अपनी सभी कृतियों के कवर-पृष्ठ आपने स्वयं ही चित्रित किये हैं

        मानव सदाचरण, पुरा शास्त्रीय-ज्ञान वैदिक-विज्ञान एवं नारी-विमर्श, जिसे वे नारी-पुरुष विमर्श की संज्ञा देते हैं, उनके प्रिय विषय हैं| उनका मानना है कि सामाजिक सरोकार युक्त साहित्य ही समाज को उचित दिशा प्रदान कर सकता है |

 सुश्यानिदी  
के-३४८, आशियाना ,लखनऊ
                                                                                         ---- सुषमा गुप्ता

                                                                                   एमए हिन्दी, ब्रजभाषा विभूषण







           












































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