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सोमवार, 25 मई 2020

डा श्याम गुप्त के अभिनन्दन ग्रन्थ 'अमृत कलश ---डा श्यामगुप्त के काव्य का वस्तुपरक अनुशीलन ----डा रंगनाथ मिश्र सत्य

                                           कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित


डा श्याम गुप्त के अभिनन्दन ग्रन्थ 'अमृत कलश का लोकार्पण २२-०२-२०२० को हुआ |---तुरंत लौकडाउन के कारण कुछ विज्ञ लोगों तक नहीं पहुँच पा रही है अतः --यहाँ इसे क्रमिक पोस्टों में प्रस्तुत किया जाएगा | प्रस्तुत है - -पंचम पुष्प ---आलेख-९.--



डा श्यामगुप्त के काव्य का वस्तुपरक अनुशीलन ----डा रंगनाथ मिश्र सत्य













                 ह्रदय की कोमल अनुभूतियों का साकार रूप ही कविता है, काव्य है| विषय वस्तु या भावसम्पदा का अभिप्रायः है रचना या कृति का आतंरिक सौन्दर्य जिसमें काव्य के प्रयोजन, उद्देश्य, पृष्ठभूमि, विषय-चयन, विषय-वैविध्य, मूलभाव, भाव बोध व भाव-सम्प्रेषण, अनुभूतियाँ, दृष्टिकोण, विषय व दृष्टि की व्यापकता, नवीनता, सामाजिक सरोकार, रचनाकार का मौलिक मत, मान्यताएं, स्थापनाएं, व्याख्याएं, गवेषणायें, आदर्श, दिशानिर्देश आदि निहित रहते हैं| डा श्यामगुप्त की पंद्रह  प्रकाशित साहित्यिक कृतियाँ हैं, जिनमें बारह पद्य काव्य-कृतियाँ, एक गद्य कृति उपन्यास, एक लक्षण-ग्रन्थ तथा एक तीन कवियों का परिचयात्मक काव्य-संग्रह है | यहाँ हम उनकी तीन काव्य-कृतियों-ब्रजबांसुरी, अगीत त्रयी व काव्य कंकरियां  का वस्तुपरक अध्ययन करेंगे |  

     ब्रजबांसुरी - डा श्यामगुप्त की काव्यकृति ब्रजबांसुरी, ब्रजभाषा में कविता की नयी व पुरानी छंद, तुकांत व अतुकांत एवं अगीत सभी काव्य-विधाओं में रचित विविध विषयक रचनाओं का संग्रह है |इस प्रकार यह ब्रजभाषा की एक अनूठी कृति बन गयी है |
        कविता में विविध नवीनता के स्वतन्त्र चेता डा श्यामगुप्त जी ने सदैव नूतन प्रयोग किये हैं तथा काव्य रचना के विविध रूपों द्वारा सदा प्रगति के पथ पर अग्रसर रहने से वे सच्चे अर्थों  में प्रगतिवादी हैं। आपने इस काव्यकृति में भी नवीन प्रयोग करते हुए अध्याय-शीर्षकों को भाव अरपन एवं उप शीर्षकों को ‘सुमन’ कहा है | काव्य की सभी विधाओं से युक्त यह काव्यकृति, ईशोपनिषद के अठारह श्लोक एवं गीता के अठारह अध्यायों की भाँति विविध विषय वस्तु पर आधारित अठारह भाव अरपन, अध्यायों में विस्तृत है | कृति के अंतर में मूलतत्व की भांति राधा-कृष्ण अन्तर्निहित हैं|
         माँ सरस्वती व वाणी-विनायक की वन्दना के साथ ब्रज-बिहारी एवं राधाजी की वंदन अर्चना भी की गयी है | ध्रुव पद में श्रीकृष्ण के विविध नाम का वर्णन मनोहारी ढंग से किया गया है ---“ धरहु नित केतिक रूप गुपाल “ एवं राधार्चन में –“ श्याम, श्याम के पद परसन हित राधा पद सुमिरूँ “|  लोकगीतों की सुन्दर छटा भाव अरपन तीन में दृष्टव्य है -
“मैं तौ खेलूंगी श्याम संग होरी... / खेलूंगी वरजोरी ...वरजोरी ...||” ...श्याम संग होरी ..
“अंचरा खोले रे भेद जिया के / जोवन उठे तरंग | /सखी री नव वसंत आये ..” .....नव वसंत आये ...
          बिना सामाजिक सरोकार एवं समाधान की दिशा के डा गुप्त कविता को व्यर्थ ही मानते है |
“ समाधान ही नाहिं दियौ तौ / सब गावौ बेकार ,/  सब कविता बेकार |”   --३/९ सब कविता बेकार
  
            मानव आचरण डा श्यामगुप्त का प्रिय विषय है, यांत्रिकता व भौतिकता की अनियमित अंधी दौड़ में बदलता गाँव एवं नगर जीवन की विषमताओं द्वारा आधुनिकता तथा भोगवादी संस्कृति के कारण मानव आचरण की गिरती हुई विसंगतियों को चित्रित किया गया है | डा श्यामगुप्त कहते हैं....
  “अबहू श्रद्धा और आदर के ,/  रिश्ते निभते हैं गांवन में |”..५/सुमन ९ -गाँव-नगर
          आजकल साहित्य में कम प्रचलित पत्र-विधा का प्रयोग करते हुए  ‘द्रोपदी की पतियाँ ‘ के माध्यम से ब्रजभाषा में अगीतों में द्रोपदी द्वारा लिखे गए पत्रों के कथ्यों द्वारा समाज एवं नारी-पुरुष विमर्श को एक नवीन दृष्टि दी गई है | डा श्यामगुप्त की दृष्टि के अनुसार स्व-संस्कृति, मानव चरित्र व मानव आचरण एवं उसका सुधार ही सभी समस्याओं का समाधान है --- दृष्टव्य हैं एक पत्र ---
“ सखा कन्हैया !.../ आजु डगर डगर, वन-बाग़ चौराहेनि पै,/ दुरजोधन ठाड़े हैं ;
सोचूँ हूँ अबकी बेरि –/ अवतार कौ जनमु लैकें न आऔ
मानुष के मन में –/ संस्कार बनिकें उतरि जाऔ |”   १०/८
              डा श्याम गुप्त आज की द्वान्द्विक परिस्थिति का कारण स्वयं को अर्थात पूर्व पीढी, को ठहराते हैं|
    सदा कमाई रत हमने, कब-/ धरम करम सिखलायौ |   --१७/३ –ना उम्मीदी नै ( नव गीत )....
                  डा श्यामगुप्त की विषय वस्तु एवं रचना उद्देश्य की एक विशेषता सर्वत्र दृष्टिगत होती है कि वे शास्त्रीय व पौराणिक–सांस्कृतिक तथ्यों, कथ्यों एवं चरित्रों के वैज्ञानिक व तात्विक एवं कल्याणकारी पक्ष को तार्किक ढंग से प्रस्तुत करने का प्रयत्न करते हैं |
   इस प्रकार यह कृति ब्रजबांसुरी अपनी विशिष्ट विविध विषयक विषय वस्तु की प्रस्तुति एवं उद्देश्य में सफल है|

अगीत-त्रयीसाहित्य-जगत में काव्य की अतुकांत कविता की संक्षिप्त रचना-विधा, ‘अगीत-कविता विधा’ की व्यापकता की सफल उद्देश्य यात्रा में उसके स्तम्भ रूप, तीन सशक्त हस्ताक्षर, संस्थापक, गति-प्रदायक एवं उन्नायक रहे साहित्यकारों के परिचय कृतित्व एवं उनके ३०-३० अगीत रचनाओं का संग्रह है | कृति प्रस्तुति में लेखक डा श्यामगुप्त का अपना एक विशिष्ट सामाजिक व साहित्यिक उद्देश्य व सरोकार है तकि आगे आनेवाले रचनाकार अगीत कविता विधा के इन पूर्व कवियों के कृतित्व, परिश्रम, लगन, उत्साह, नवीनता के प्रति ललक, साहित्यिक सरोकार व साहित्य के बारे में जानें तथा उनसे प्रेरणा प्राप्त कर सकें |  डा सत्य की सामाजिक सरोकार युक्त एक रचना दृष्टिगत है –
  “नवयुग का मिलकर / निर्माण करें / मानव का मानव से प्रेम हो / जीवन में नव बहार आये | सारा संसार एक हो / शांति और सुख में / यह राष्ट्र लहलहाए | “ 
          अगीत विधा के उन्नायक महाकवि जगतनारायण पाण्डेय के सरोकार व शिल्प, बिम्व, व्यंजना, से सम्बद्ध, अगीत-त्रयी से एक नव-अगीत देखें---“झुरुमुट के कोने में / कमर का दर्द लपेटे / दाने बीनती परछाईं | / ज़माना ढूंढ रहा है / खुद को किसी ढेर में |”
      अगीत विधा को स्थायित्व व प्रसार देने वाले साहित्यकार महाकवि डा श्यामगुप्त का कथन है    “ प्रवाह व लय काव्य की विशेषताएं हैं जो काव्य विषय व भाव-सम्प्रेषण क्षमता की आवश्यकतानुसार छंदोबद्ध काव्य में भी होसकती है मुक्तछंद काव्य में भी , अतः गीत-अगीत कोई विवाद का विषय नहीं है |”  
    डा श्याम गुप्त के सरोकार युक्त अगीत रचना का एक उदाहरण प्रस्तुत है –
    “वे राष्ट्रगान गाकर / भीड़ को देश पर मर मिटने की कसम दिलाकर / बैठ गए लक्ज़री कार में जाकर ;/
     टोपी पकडाई पीए को / अगले वर्ष के लिए / रखे धुला कर |”  .....अगीत-त्रयी से

           ईशोपनिषद का काव्य-भावानुवाद- में ईशोपनिषद के मन्त्रों का कविता रूप में भावानुवाद प्रस्तुत किया गया है | विश्व के कठिनतम ग्रन्थ  एवं ज्ञान के भण्डार स्थित कठिनतम विषय को सरल व सामान्यजनग्राही भाषा व शैली में प्रस्तुति डा श्याम गुप्त का अपना प्रयोजन है जिसमें वे पूर्ण सफल हुए हैं | एक उदाहरण प्रस्तुत है ----




जाने कितने स्वार्थ रूप के,विविध आवरण के ढकने से |
सत्य का मुख है ढंका हुआ प्रभु !छुपा हुआ है सत्य-सनातन |

हे पालक-पोषक ! सब जग के,सत्य-धर्म के दृश्य-कर्म हित |
इस असत्य के स्वर्ण आवरण,को कर कृपा, हटायें सत से | --ईशोपनिषद के मन्त्र पंद्रह का काव्य भावानुवाद..

           तुम तुम और तुम - में विभिन्न प्रकार के श्रृंगार व प्रेम के  विविध रूप भाव रस, भंगिमाएं , स्थितियां, संभावनाएं व कल्पनाएँ  युक्त गीतों का एक भाव संसार सजाया गया है  और वे अपने प्रयोजन में सफल हुए हैं यथा -
इस प्रीति की बरसात में ,भीगा हुआ तन मन मेरा |
कैसे कहें ,क्या होगया,क्या ना हुआ, कैसे कहें ||

कामिनी ! इस मिलन पल को,
इक सुखद सा नाम देदो |
सुमुखि ! अब तो प्रणय का वरदान देदो ||
---
प्यार की कोई भी परिभाषा नहीं है ,
मन के भावों की कोई भाषा नहीं है

    काव्य-कांकरियाँ ई-बुक..--मुक्तक, मुक्तछंद आदि विभिन्न गीत-अगीत लघुकाओं  का संग्रह है , जिसमें विभिन्न रस , भाव , स्थितियों, हास्य, व्यंग्य , प्रेम आदि विविध भाव रूपों की लघु रचनाएँ प्रस्तुत की गयी हैं जिन्हें कवि ने  काव्य-कांकरियाँ  कहा है | कवि का कथन है  ये बड़ी-छोटी,लघु-विभु,महीन-मोटी,गोल-चिकनी,गढ़-अनगढ़,टेडी-मेडी,हल्की-भारी,तीब्र-सौम्य,खट्टी-मीठी-कड़वी,चुटीली,रसीली,सुरीली,लजीली, हठीली,नशीली काँकरियाँ श्रोताओं व पाठकों के तन मन पर विभिन्न प्रकार से प्रहार करेंगी एसा मेरा विचार है एवं मन को सुखानुभूति तथा त्रिविधि शान्ति प्रदान करेंगी |कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं---
अतुकांत—कंकरियां ---
सांप-
आदमी
इतना विषैला होगया है
सांप,
अब आस्तीन में नहीं पलते |--अगीत –कांकरिया
--
आँख मूंदकर हुक्म बजाना,
सच की बात न मुंह पर लाना;
पद जाएगा कष्ट उठाना |  -----त्रिपदा अगीत कांकरिया
तुकांत कंकरियाँ---
लोकतंत्र-
लघु है पर विभु अर्थ बताये उसे मन्त्र कहते हैं,
लघुकाया बहुभार उठाये उसे यंत्र कहते हैं |
मिले बीस प्रतिशत मत जिसको श्याम’ उसी की,
बन जाए सरकार उसी को लोकतंत्र कहते हैं | 

सभी समस्या टैक्ट से जो सुलझा लेजाय,
वो ही अफसर सफल है, प्रोमोशन झट पाय | ---
 श्याम क्या चित्त लगाइए, श्रम क्या करे कठोर,
उचित सिफारिस लाइए, डोनेशन का जोर |


          इस प्रकार डा श्याम गुप्त काव्य के प्रयोजन, उद्देश्य, पृष्ठभूमि, विषय-चयन, विषय-वैविध्य, मूलभाव, भाव बोध व भाव-सम्प्रेषण, अनुभूतियाँ, दृष्टिकोण, विषय व दृष्टि की व्यापकता, नवीनता, सामाजिक सरोकार, रचनाकार का मौलिक मत, मान्यताएं, स्थापनाएं, व्याख्याएं, गवेषणायें, आदर्श, दिशानिर्देश आदि काव्य के आतंरिक सौन्दर्य व भाव पक्ष के सुन्दर व समर्थ चितेरे के रूप में प्रस्तुत होते हैं |

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